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सरदार वल्लभ भाई पटेल

इस बार दिवाली में

नाम _स्नेह प्रेमचन्द  स्थान _हिसार (हरियाणा) शीर्षक _इस बार दिवाली में झाड़ना ही है तो घर संग मन की भी  गर्द झाड़ लो इस बार दिवाली में रंगना ही है तो रंग लो मन प्रेम से,  ऐसा कोई रंगरेज बुला लो इस बार दिवाली में  जलाना ही है तो जला लो  दीया ज्ञान का,  ले आओ ऐसे ज्ञान दीये इस बार दिवाली में शमन करना ही है तो करो विकारों का  लोभ,मोह,काम,क्रोध,ईर्ष्या,अहंकार सबका करो शमन,  इस बार दिवाली में  भला करना ही है तो करो कुम्हार का,  खरीद माटी के दीये उससे जो लाए उजियारे उसकी अंधेरी झोपड़ी में भी,  इस बार दिवाली में जमी है बर्फ जो किसी रिश्ते पर मुद्दत से, पिंघला दो स्नेह सानिध्य से इस बार दिवाली में जाले उतारने ही हैं तो तो उतार दो पूर्वाग्रहों,  नफरतों, भेदभाव के इस बार दिवाली में  धोनी ही है तो धो डालो समस्त बुराइयां चित से,  हो जाए मन उजला,निर्मल, पावन इस बार दिवाली में  विचरण करना ही है तो करो मन के गलियारों में, जहां गए नहीं बरसों से, करो मुलाकात खुद की खुद से इस बार दिवाली में  देना ही है तो दो यथा संभव दान...

सबके बस की बात नहीं(( दिल के भाव स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

स्नेह चित में कितना स्नेह था स्नेहिल से तेरे व्यक्तित्व के लिए, यह शब्दों,व्यंजनों के बस की बात नहीं भाव लिखने के लिए हम सही शब्दों का चयन कर पाएं यह मेरे बस की बात नहीं दिल और दिमाग दोनों में सबके बस जाएं तुझ सा, यह सबके बस की बात नहीं वाणी,व्यवहार,ज्ञान और प्रस्तुतिकरण तेरे जैसे हों, यह सबके बस की बात नहीं परायों को भी अपना बनाना कोई सीखे तुझ से,सबके दिल में मोम सा उतर जाना सबके बस की बात नहीं उच्चारण नहीं आचरण में करके दिखाना संकल्प को अपनी दूरदर्शिता और कर्मठता से सिद्धि से मिलाना तुझ सा,सबके बस की बात नहीं हर किरदार को बखूबी निभाना तुझ सा सबके बस की बात नहीं अपने स्तर को दूजे के स्तर पर लाकर सोचना तुझ जैसा सबके बस की बात नहीं हर जिज्ञासा को शांत करना, हर कब,क्यों,कैसे,कितने का बच्चों को उत्तर और स्पष्टीकरण देना तुझ सा सबके बस की बात नहीं दिल पर दस्तक, जेहन में बसेरा, चित में पक्के निशान बनाना तुझ से,सबके बस की बात नहीं रिजेक्ट नहीं करेक्ट करना सबके बस की बात नहीं चित में करुणा,दिमाग में ज्ञान, वाणी में मधुरता होना तुझ सी सबके बस की बात नहीं संवाद,संबोधन और उद्बोधन सब इ...

संस्कृति और संस्कार है बिहार

मात्र एक राज्य नहीं, एक क्षेत्र नहीं संस्कृति,ज्ञान,कर्मठता संस्कार है बिहार धरा है ये उन युग पुरुषों की निज ज्ञान समर्पण हिम्मत से दूर कर दिया जिन्होंने अंधकार इतिहास में अमर जगह,पहचान बनाई ये नाम करवाते यह सत्य स्वीकार  इसी धरा पर जन्म लिया जान नीति के जनक दाता **चाणक्य** ने, साम्राज्यों की नींव के जनक थे जिनके विचार मात्र राज्य नहीं, कोई क्षेत्र नहीं सोच संस्कृति संस्कार है बिहार दशरथ मांझी भी जन्मे इसी माटी में,अकेले ही काट पहाड़ एक नई राह बनाने का खोल दिया द्वार और नहीं तो क्या लगता नहीं ये चमत्कार रामधारी सिंह दिनकर और रेणु इसी माटी के दो कोहिनूर हुए अपनी लेखनी से जिन्होंने कर दिया चमत्कार **महर्षि वाल्मीकि** ने इसी धरा पर लिया था अवतार रच कर रामायण,पढ़ा कर पाठ समझा गए महता क्या होता है सत्य,मर्यादा,वाचनपालन,परिवार **पतिव्रता माता सीता**  भी जन्मी थी इसी माटी में जिनके त्याग,तप, कर्तव्यनिष्ठा से अछूता नहीं यह संसार **सम्राट अशोक** का संबंध भी है इसी माटी से, जाने उनकी महानता का सब सार  कलिंग युद्ध के बाद जागा हृदय में जिनके करुणा का सागर, युद्ध से शांति ...

छठ पूजा

हर शब्द और व्यंजन पड जाता है छोटा जब *छठ पूजा* का करने लगती हूं बखान श्रद्धा और आस्था का महापर्व यह, मूल में इसके जनकल्याण *सूर्यदेव और मां छठी* की होती है दिल से पूजा, आस्था के सैलाब में बह जाता है जहान प्रकृति की शक्तियों के प्रति आभार प्रकट करता ये महापर्व तमस हटा आलोक का मिलता है वरदान मात्र पूजा ही नहीं है यह शुद्धि आत्मा की,निर्मल चित और पावन तन का मिलता इनाम सालों से गए बेटे आ जाते हैं घर मात पिता से मिलने, तन प्रफुल्लित मन हो जाता है आह्लादित करे पूजा हर मात पिता सुखी रहे उसकी संतान दिनकर की होती सच्चे दिल से पूजा अपनी रोशनी से दिनकर मन के उजियारे करे प्रदान

ज़रूरी है मन के भीतर झांकना

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