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वो बेटी कहलाती है

खुद मझधार में होकर भी जो साहिल का पता बताती है  मेरी दृष्टि में तो वह बेटी कहलाती है

पल पल दिल के पास

भाई दूज

दीपों की माला

दीपावली विशेष(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

धनतेरस विशेष(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

लुटा बचपन

लुटा बचपन *लुटा हुआ मासूम बचपन जब कोने में सिमटकर रोता है रूह कांप उठती है सीने में शूल सा चुभता है* *गली, मोहल्ले, हर घर में छिपे हुए हैं गुनहगार  हर उम्र, हर रिश्ता  हो गया है दागदार* *मासूमों पर वार किया  इनके ही पहरेदारों ने विश्वास है इनका तोड दिया  खुद इनके पालनहारों ने* *भय बसता उन आँखों में  जहाँ सपनों की होनी थी फुलवारी  चीत्कार है गूंज रहा  जहाँ बस होनी थी किलकारी* *स्वार्थ और हवस की दुनिया  किस दिशा हमें ले जायेगी??  कल को कुचला आज है इसने  कैसा भविष्य यह पायेगी?? *महफूज रखो नन्हे फरिश्तों को ये ही तो हमारे उजाले हैं  सहेज लो इस बचपन को ये ही कल के रखवाले हैं*  *खुद लांघो ना ही लांघने दो मर्यादा जो हमारी है किसी एक का काम नहीं  यह तो सांझी जिम्मेदारी है*