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Showing posts from October, 2020

काश

काश समय रुक जाता,हम तुम कभी बड़े न होते,जो होता मन में कह देते,मन होता तो हँसते,मन होता तो रोते, लड़ते,झगड़ते,पर फिर एक हो जाते,सहजता से न अपना दामन चुराते,दिलों की दहलीज पर हमको दस्तक बखूबी देना आता,सांझे सुख दुख हो जाते,साथ सदा एक दूजे का भाता,एक दूजे बिन जीना हमको काश कभी न सुहाता,औपचारिकताओं का सैलाब फिर दूरियों की सुनामी न लाता,कच्चे धागे की पक्की डोर का बड़ा पावन है भाई बहन का नाता।।

लोह पुरुष thought by Sneh premchand

सांझ पड़ी दिन ढल गया(Thought by Sneh प्रेमचन्द)

बाघ n भूखा जाए

अचानक ही याद आ जाती है

फिसलते लम्हे

माई री

नहीं पता था मुझे

कौन है ये चित्रकार

कुछ भी नहीं होता मुश्किल (Thought by Sneh premchand)

बदलाव

मिल बांट

जाने कौन सा प्रयास

तब होती है दीवाली Thought by Sneh premchand

रिश्तों में जब बढ़ती है मिठास,तब दीवाली होती है,रिश्तों में जब घटती है खटास तब दीवाली होती है,कुटिया भी जब सजती है महलों के संग,तब दीवाली होती है,हर घर में बनती है जब रसोई ,तब दीवाली बनती है,समर्थ जब थाम लेता है हाथ असमर्थ का,तब  दीवाली बनती है,एक छत के नीचे बिना भेद भाव के जब सब सुख दुख सांझे करते हैं, तब दीवाली बनती है,जब सब एक दूजे की भावनाओं की कद्र करते है,तब दीवाली बनती है,बच्चे जब मन से आदर करते है बड़ों का,तब दीवाली बनती है,आप को क्या लगता है।।

क्या होता है त्यौहार thought by Sneh premchand

क्या होता है माँ त्यौहार?पूछ रही हूँ मुझे बता दो,वर्ना पूछूँगी बारम्बार,सुन मेरी लाडो रानी,तुझे बताऊं,प्रेम की नींव पर टिका होता है त्यौहार,सूने जीवन में रंग भर देता है,चिंता,बेचैनी हर लेता है,विविधता में एकता रहे हमेशा,ये संदेसा सब को देता है,करे न कोई किसी की उपेक्षा,पहने सब प्रेम का सुंदर हार,जिजीविषा को पोषित करता है हर पर्व और हर त्यौहार।।

आज वो फिर से याद आई Thought by Sneh premchand

आज वो फिर से याद आयी,माँ की दीवाली पर मन से की गयी बेहतरीन सफाई,वो ईंटों के फर्श को बोरियों से रगड़ रगड़ कर कर देना लाल,वो पूरे घर को पाइप से धोना,माँ सच में थी तू बड़ी कमाल,वो काम खत्म कर माँ संग तेरे जो जाना होता था बाजार,अब रोज़ बाज़ारों में जा कर भी नही मिलती ख़ुशी वो,तेरी  कर्मठता हर शै को कर देती थी गुलज़ार,वो खील पताशे आज के छप्पन भोगों से भी होते थे माँ लज़ीज़,वो आलू गोभी की सब्जी संग माखन के ,तृप्ति होती थी कितनी अज़ीज़,माँ सच में तेरी प्यार की दस्तक से खिल सी जाती थी दिल की दहलीज,जोश,उत्साह,तरंग से भरपूर जीवन का माँ तूने विषम परिस्थितियों में भी क्र दिया शंखनाद,शायद ही कोई शाम होगी ऐसी,जब आयी न होगी तेरी याद,ज़िन्दगी के सफर में तेरे साथ ने प्यारा सा एक साथ निभाया,तुझे कह लेते थे मन की पाती, ये बाकि जहाँ तो लगता है पराया, तू कितनी आपसी सी थी,तू कितनी  सच्ची सी थी,आज ये एहसास और जा रहा है गहराया,तू जहां रहे,मिले शांति तेरी दिवंगत आत्मा को,दीवाली के इस पावन पर्व पर दिल ने दोहराया।।

पैमाना प्रेम का (Thought by Sneh Prem chand)

पैमाना प्रेम का

नायन

सीने में

हूक सी

मां की लोरी

नज़र अंदाज़

अपना काम

ज़मीदोज़

किताब zindgi ki

बन गई किताब

ज़िम्मेदार

कहीं स्वार्थ की आंधी में

अपने अपने पैमाने

शिकवे

खेल सारा सोच का

जब भी देखा मां जाई को Thought by Sneh premchand

जब भी देखा मां जाई को, मुझे मां हौले से याद आई। सच में ही वो कितनी अच्छी थी थी मैं तो उसकी परछाई।। सहज योग का अनहद नाद वो कितना बखूबी बजाती थी। कभी नहीं रुकती,  कभी नहीं थकती थी, कर्म की मांग में सफलता का सिंदूर सजाती थी।। जब भी देखा मां जाई को, मां फिर हौले से याद आई। याद तो जब आए,  जब जेहन से जाती हो, फिर सांझ घनी है गहराई।।          स्नेह प्रेमचंद

ग्यारह वचन

कितना बदल गया इंसान

हां में हां मिलाने वाले

ज़िम्मेदार

पैमाने

अपने अपने

वो कहते गए

हम सुनते गए

नहीं आता रस

जीते तो हैं

दुआएं कमाना भी है ज़रूरी,( Thought by Sneh Prem chand)

धन संग दुआ कमाना भी है उतना ही ज़रूरी। हमारी आजीविका का आधार भूले से भी  न हो किसी की मज़बूरी।। कयामत के दिन देना होगा जवाब फिर, गलत राह से हो बेहतर हम रखें दूरी।।। इस सत्य से हों अवगत हम भली भांति, न बनें मृग सम,जाने न जो, नाभि में ही है कस्तूरी।।।।         स्नेह प्रेमचंद

चारों हैं हम मां जाई (Thought by Sneh premchand)

प्रेम वृक्ष की ही तो हैं हम चार डाली। बड़े प्रेम से, बड़े जतनों से गई थी पाली।। मिले जब भी एक दूजे से, समझो आ गई होली दीवाली।।। अक्स आता है नजर एक दूजे में मात पिता का, सच में बहन होती ही है निराली।।।।           स्नेह प्रेमचंद

इस बार दीवाली

कभी होली कभी दीवाली

बहुत कुछ याद दिला जाती है

आजीविका

सबको सन्मति दे भगवान

गरमाहट

बहुत है

No other

we is always better than i

love will heal

Try to feel

O my dear pen

There is no end

पढ़ते जाना

टुकडे चार

बिन मचाए शोर

मेहनत

आलस्य

कर्म की खाट पर

चादर सफलता की

जाने कब से

मेहनती