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आकंठ तृप्ति का अहसास(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 मिल जाते हैं जब गुरुजन और मित्र पुराने,आकंठ तृप्ति का होता है अहसास।।  चेतना में हो जाता है सकारात्मक स्पंदन, जिजीविषा चित में करने लगती है वास।। सुवासित हो जाते हैं अंतर्मन के सारे गलियारे। नाच उठता ही मन मयूर,जब जाते हैं हम गुरु के द्वारे।। मात्र एक परिचय नहीं,ये तो संबंधों एक पुनर्जन्म सा होता है। मिलन होता है अल्फाजों का भावों से, मधुबन मन का तरंगित होता है।। समय की धूलि से हो जाते हैं धूमिल जो गहरे से नाते, ये मिलन उनका, कोलिन होता है। साफ हो जाता है मन का दर्पण, उजला उजला सा मन एक दूजे का  प्रतिबिंबित होता है।। नए रिश्तों के नए भंवर में हम सच में उलझ से जाते हैं। पर मिलते हैं जब इन पुराने नातों से, एक आंतरिक खुशी से नयन मिलाते हैं।। सौ बात की एक बात है, समारोह ये दे जाता एक सुखद आभास। दिल से कर के देखो महसूस, आकंठ तृप्ति का होता है अहसास।। जिंदगी की नौका को,भाग्य की लहरे अपने ही बहाव में बहा ले जाती हैं। बेशक कितने भी बड़े हो जाएं हम, यादें पुरानी जेहन को बड़ी सुहाती हैं।। एक ख्याल फिर आता है जेहन में, काश ये बचपन के साथी जिंदगी में भी होते आस पास।। मिलते हैं जब गुरुजन और मित्र