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Showing posts from October, 2022

काश समय रुक जाता (( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

 समय रुक जाता,हम तुम कभी बड़े न होते,जो होता मन में कह देते,मन होता तो हँसते,मन होता तो रोते, लड़ते,झगड़ते,पर फिर एक हो जाते,सहजता से न अपना दामन चुराते,दिलों की दहलीज पर हमको दस्तक बखूबी देना आता,सांझे सुख दुख हो जाते,साथ सदा एक दूजे का भाता,एक दूजे बिन जीना हमको काश कभी न सुहाता,औपचारिकताओं का सैलाब फिर दूरियों की सुनामी न लाता,कच्चे धागे की पक्की डोर का बड़ा पावन है भाई बहन का नाता

स्नेह निमंत्रण

भा **ई जब बहन को बच्चों की शादी में देता है जो सौगात त** न मन दोनों हो जाते हैं भाव विहल, प्रेम संबंध खिल जाते हैं जैसे पारिजात।। लेन देन की बात नहीं ये,  स्नेह,परवाह,चिंता,अपनत्व की है बात।। भाई की लंबी उम्र की करती है दुआ बहना दिन और रात।। ध्यान से देखना उस मां जाई को,  आ जाते हैं नजर मात और तात।। कोई दौलत और जागीर नहीं, उसे चाहिए बस प्रेम की सौगात।।

भाई बहन

भाई बहिन के स्वार्थरहित प्रेम का प्रतीक है भाई दूज का पावन त्यौहार,सबसे लंबे साथ के साथी,लड़ते,झगड़ते,पर फिर भी मन से करते प्यार,नये रिश्तों के नए भंवर में बहना उलझ सी जाती है,पर शायद ही कोई शाम होगी ऐसी,जब याद उसे न आती है,परदेस में भी अपनी सोच में वो सदा जगह भाइयों को देती है,कुछ लेने नही आती हैं पीहर बहने,बस कुछ बचपन के पल बाबुल के आंगन से चुपके से चुरा लेती है,पर समय की कैसी चलती है अजब गजब पुरवाई, एक अनोखी औपचारिकता ने धीरे धीरे इस रिश्ते में जगह बनाई,वो लड़,झगड़ कर एक हो जाने वाले,बाद में आम सी बात कहने का भी खो देते है अधिकार,क्या यही होता है आप बताओ भैया दूज का पावन त्यौहार

सही मायने

रंगरेज कहूं तो सही होगा(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

नमस्तुभ्यम नमस्तुभ्यम(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कुछ लोग

शोक नहीं संताप नहीं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

ये रंगरेज शहर के(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सौहार्द की कूची से,समरसता के शहर को बड़े प्रेम से ये रंगरेज रंग देते हैं हर रविवार। जितना करते हैं उतना ही आगे बढ़ते हैं सच में हैं ये उम्दा शिल्पकार।। धन्य है कला इनकी,धन्य हैं ये सारे कलाकार।।

आज फिर से याद आई

आज वो फिर से याद आयी,माँ की दीवाली पर मन से की गयी बेहतरीन सफाई,वो ईंटों के फर्श को बोरियों से रगड़ रगड़ कर कर देना लाल,वो पूरे घर को पाइप से धोना,माँ सच में थी तू बड़ी कमाल,वो काम खत्म कर माँ संग तेरे जो जाना होता था बाजार,अब रोज़ बाज़ारों में जा कर भी नही मिलती ख़ुशी वो,तेरी  कर्मठता हर शै को कर देती थी गुलज़ार,वो खील पताशे आज के छप्पन भोगों से भी होते थे माँ लज़ीज़,वो आलू गोभी की सब्जी संग माखन के ,तृप्ति होती थी कितनी अज़ीज़,माँ सच में तेरी प्यार की दस्तक से खिल सी जाती थी दिल की दहलीज,जोश,उत्साह,तरंग से भरपूर जीवन का माँ तूने विषम परिस्थितियों में भी क्र दिया शंखनाद,शायद ही कोई शाम होगी ऐसी,जब आयी न होगी तेरी याद,ज़िन्दगी के सफर में तेरे साथ ने प्यारा सा एक साथ निभाया,तुझे कह लेते थे मन की पाती, ये बाकि जहाँ तो लगता है पराया, तू कितनी आपसी सी थी,तू कितनी  सच्ची सी थी,आज ये एहसास और जा रहा है गहराया,तू जहां रहे,मिले शांति तेरी दिवंगत आत्मा को,दीवाली के इस पावन पर्व पर दिल ने दोहराया

फूल गुलाब का

एक और एक होते हैं ग्यारह

स्वच्छ हो अम्बर

नन्हे कदम

कुछ कर गुजरने का जज्बा

दस्तक

धन्य है कला,धन्य हैं कलाकार

जब प्रतिभा को मिलता है प्रोत्साहन(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कान्हा से मिला दे(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

भाई दूज

परिंदे से

जिंदगी के कैनवास पर

ज़िन्दगी के कैनवास पर हर खिला हुआ रंग ही नही होता,हमे अपने कर्मो की कूची से रंग भरने पड़ते हैं,खुदा हमे विकल्प देता है,हमारा चयन और प्रयत्न हमारे भाग्य को निर्धारित करते हैं।।तेरा तो चयन और प्रयत्न दोनों ही लाजवाब रहे मां जाई।।

बीत गए दिन

बीत गए दिन ,माँ के बिना रे,सहज से रहे ना,माँ के बिना रे,बड़े से हो गए,माँ के बिना रे,जाएँ कहाँ रे,माँ के बिना रे,मन की पाती किसे सुनाएँ, माँ के बिना रे,कुछ भी न भाये, माँ के बिना रे,सच माँ के बिना बहुत कुछ चला जाता है,एक ऐसी रिक्तता आ जाती है,जिसे हम न्यौता नही देते,वो स्वतः ही आ जाती है

शुभ दिवाली 2022

रामायण और महाभारत(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सौ बात की एक बात है

कह दिया बस कह दिया

शुभ दीपावली मंगल कामनाओं सहित(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जैसे पतंग

जैसे पतंग को आसमा की बुलंदियाँ छूने के बाद भी कचरे के ढेर में चले जाना है,फिर भी वो उड़ती है, यूँ ही इंसान को भी जाना तो  मुक्तिधाम ही है,फिर भी वो कर्म कर के सफलता पाने की कोशिश करता है।

समझो दीवाली आ गई

जोश और जिजीविषा

बागबान ही गर अति खास हो

राम संग जब खड़े हों लक्ष्मण

ये रंगरेज(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

यहां अहम से वयम की चलती है बयार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

एक छाता ऐसा भी हो

और कहीं फिर क्यों हों जाना

आप भी आओ हम भी आएं इस बार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

स्वच्छ धरा और खुला आसमान(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

ये रंगरेज हमारे(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कर्म ही हैं परिचय पत्र व्यक्ति का

बिन प्रेम सब सूना है

बिन प्रेम सब सूना है जग में,प्रेम ही है हर रिश्ते का सार,जिसने पढ़ ली प्रेम की पाती, समझो अपना जीवन लिया संवार,प्रेम संवेदना के पिता है,और संवेदना का ममता से है माता का नाता,संवेदनशील होना है बहुत ज़रूरी,इंसान क्यों सब ये है भूलता जाता,नियत समय के लिए ही तो हम सब को किरदार अपना अपना निभाना है,क्यों न निभाएं इसको सही तरह से,इस जग को छोड़ कर जाना है,ज़रा सोचिए।।

नहीं मात्र हनुमान के,सबके चित में राम हैं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

नहीं मात्र हनुमान के, सबके चित में राम हैं। राम रात्रि,राम दिवस  राम भोर, शाम हैं।। राम भाव, राम शब्द,  राम प्रेम, अनुराग है। राम वचन, राम सोच,  राम कर्म,परिणाम हैं।। राम भगति,राम शक्ति,  राम ज्ञान, विज्ञान हैं। राम शब्द, राम अर्थ,  राम जनकल्याण हैं।। नहीं मात्र हनुमान के, सबके चित में राम हैं।। राम तीर्थ,राम पूजा,  राम चारों धाम हैं। राम गरिमा,राम महिमा,  राम गौरव गान हैं।। राम श्रद्धा,राम आस्था,  राम ही विश्वाश हैं। राम दिल,राम धड़कन,  राम प्राण,श्वास हैं।। नहीं मात्र हनुमान के, सबके चित में राम हैं।। राम सत्य,राम शिवम,राम सुंदरता का नाम है। राम यज्ञ,राम तीर्थ,राम चारों धाम हैं।। नहीं मात्र हनुमान के,सबके चित में राम हैं।। राम कतरा, राम सागर,  राम पंडित प्रकांड हैं। राम दृष्टि, राम सृष्टि, राम ही पूरा ब्रह्मांड हैं।। राम युक्ति,राम मुक्ति,  राम चेतना का नाम है। नहीं मात्र हनुमान के,  सबके चित में राम हैं।। राम मानस,राम गीता,  राम ही तो कर्म हैं। राम मनस्वी, राम तपस्वी,  राम ही तो धर्म हैं।। राम सफर, राम मंजिल,  राम ही हैं साधना। राम मोक्ष,राम स्वर्ग, राम ही आराधना।। राम द

आज फिर याद आई वो दीवाली(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

धनतेरस पर अब की बार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

**चलो ना इस बार** धनतेरस पर कुछ ऐसा खरीद कर लाते हैं  हर चेहरे पर खिले मुस्कान, मायूसी को दूर भगाते हैं।। जरूरत भी नहीं होती जिनकी पूरी, उनकी ओर हाथ बढ़ाते हैं। अपने लिए तो लेते ही हैं सदा, चलो इस बार उन्हें दिलवा कर, सच्ची खुशी खरीद कर लाते हैं।। लेने से नहीं,देने से मिलती है सच्ची खुशी,सबको यह फलसफा समझाते   हैं।। चलो ना इस बार धनतेरस सबकी मनवाते हैं।। यही सच्चे मायने होते हैं दीवाली के, जान बूझ कर भी हम क्यों समझ नहीं पाते हैं???? अपनी तृष्णाओं पर अंकुश हम इस बार खुद ही लगाते हैं। इनका होता नहीं अंत कभी,खटपतवार सा क्यों हम इन्हें  बढ़ाते हैं???

चलो ना

दो वंश मिले दो फूल खिले

**दो वंश मिले,दो फूल खिले** दो सपनों ने आज ही के रोज किया था श्रृंगार। दो दूर देश के पथिकों ने संग संग चलना किया स्वीकार।। खून का नहीं,  है ये नाता स्मर्पण और विश्वाश का, प्रेम ही इस रिश्ते का आधार।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही मूलमंत्र है सफल वैवाहिक जीवन का, हो जाता है सरल जीवन गर कर लेते हैं स्वीकार।। आज के दिन दे रहे हम दुआएं बेशुमार।। खुश हो तेरा दांपत्य जीवन लाडो, सुख,समृद्धि और सफलता सदा खटखटाए आपका द्वार।।