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आइना

आईने में हमारा शारीरिक प्रतिबिम्ब नज़र आता है, मन का प्रतिबिंब तो बस रूह को ही भाता है।। चित्रकार को विधाता शायद फुर्सत में ही बनाता है, कुदरत की सृष्टि को उकेरने की कोशिश वो अक्सर करता हुआ नजर आता है।।

दर्पण

मां तेरा

प्रतिबिंब

प्रति क्रिया

दर्पण

दर्पण हमें हमारा ही प्रतिबिम्ब दिखाता है। मगर दूसरों की ऑंखें पढ़ना नही सब को आता है।।