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यूं हीं चलना साथ साथ जीवन के सफर में ओ हमसफर

यूं हीं चलना साथ साथ जीवन के सफर में ओ हमसफर,हैं तुमसे ही जीवन की खुशियां सारी हर सफर है मंजिल से भी सुहाना संग  तेरे, मेरे मन मंदिर के ओ पुजारी लम्हा लम्हा बरस 29 बीते संग तेरे खिली संग तेरे ही जीवन की फुलवारी शेष जीवन भी विशेष हो संग तेरे, अर्ज सुन लेना मेरी बनवारी कुछ कर दरगुज़र,कुछ कर दरकिनार यही मूलमंत्र है सुखद दांपत्य जीवन का, प्रेम ही इस नाते का आधार खून का नहीं है ये नाता समर्पण, विश्वाश, सत्य और स्नेह का, कर के देखो तनिक विचार हिना सा होता है ये नाता, जो हौले हौले धानी से श्यामल हो जाता

जिंदगी के सफर में

जीवन के सफर में(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जीवन के सफर में ओ हमसफ़र! देखो, सदा ही साथ निभाना। प्रेमडोर न टूटे कभी, इस बंधन को गहरा करते जाना। समय संग संग ये नाता  और भी गहरा होता जाए। जैसे धानी सी हिना हौले हौले श्यामल श्यामल होती जाए।। लड़ झगड़ कर भी संग बस  एक दूजे का एक दूजे को भाए। कभी रूठूं मैं,तो मना लेना झट से, कहीं एक भी पल हमारा व्यर्थ ना जाए।। खून का तो है नही, बस है ये प्रेम  औऱ विश्वास का नाता। अनजान राह के जब मिल जाते हैं मुसाफिर, उनको निभाना हो बखूबी आता।। सुख दुख दोनो हों अब सांझे सांझे, ऐसी प्रेम की पींग बढ़ाना। सूरत ए हाल कोई भी हो, साथ देने से ना कतराना।। जीवन के सफर में ओ हमसफर! देखो सदा ही साथ निभाना।। मुझे प्यार तुमसे ही है,बिन कहे ये समझ सा जाना।। कुछ तुझ में कमी,कुछ मुझ में भी होगी कमी, कुछ  दरगुजर,कुछ दरकिनार सा करते जाना। हर स्पीड ब्रेकर को पार करेंगे संग संग, गाना सदा ही प्रेम भरा सा तराना।। एक नहीं ये तो जन्मों जन्मों का है बंधन साथी, हर जन्म में मेरे हमराही बन जाना।।