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सार्थक सा लगता है अब इतवार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*सार्थक सा लगने लगा है अब इतवार* *सही मायने में जिंदगी लगी करने कर्मों का श्रृंगार* आप भी आओ हम भी आएं *हमारा प्यार हिसार* *यहां अहम से वयम की सतत चलती है बयार* *कर्म ही असली परिचय पत्र होते हैं व्यक्ति का, वरना एक ही नाम के व्यक्ति होते हैं हजार* *यहां स्वच्छता रहती है जागरूकता की गोद में,सौंदर्य से कण कण में आता है निखार* *सार्थक सा लगने लगा है अब इतवार*