Skip to main content

Posts

Showing posts with the label कमल

खिल कीचड़ मे कमल सा

लेखन। thought by snehpremchand

लेखन की लगी जब लग जाती है, तब कलम से खिलने लगते हैं कमल, सोच ही बदल जाती है।। अल्फ़ाज़ों के दलदल से विचार पुष्प से बगिया पूरी चहक जाती है।। सृजन की चौखट पर दस्तक देने लगते  हैं,कोई कविता मुस्कुराती है।। हृदय के खेत मे अंकुर उग जाते हैं सम्वेदना के,स्वरलहरियां गुनगुनाती हैं।।                स्नेहप्रेमचन्द

खतपतवार। thought by snehprwmchand

तुम कमल सी खिल कर थम गई, मैं खतपतवार सा उगता रहा।।