Skip to main content

Posts

Showing posts with the label चाबुक

मन के घोड़े

लगाम। thought by snehpremchand

गलतियों के गलियारे बहुत संकीर्ण होते हैं, कभी मन्ज़िल तक नहीं ले जाते। गलतियों के दलदल में इंसान धँसता  चला जाता है, ये कभी ऊपर ले कर नहीं आते।। मन के घोड़े तो दौड़ते रहते हैं, चहुँ दिशा में, क्यों उन पर हम विवेक की लगाम नहीं लगाते?? बेहतर हो लगा दें हम कभी कभी  इन्हें सुसंस्कारों की चाबुक, ज़िन्दगी के सफर को क्यों  इतना कठिन हैं बनाते??? स्नेहप्रेमचन्द