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वो बचपन कितना प्यारा था (थॉट बाय स्नेह प्रेमचंद)

 चिंता चित्त में न होती थी मासूमियत ममता के आंचल में सोती थी रूठे को मनाना आता था सहजता का दामन भाता था माया के दलदल में न गोता खाया था सब अपने न ,कोई पराया था झगड़े तब भी होते थे पर अपनापन न खोते थे रिश्तों की उद्ध  डन को सी लेती थी माँ समन्वय और समझौते से हर रिश्ता माँ ने संवारा था वो बचपन कितना प्यारा थाकोई चिंता चित्त में न होती थी मासूमियत ममता के आंचल में सोती थी रूठे को मनाना आता था सहजता का दामन भाता था माया के दलदल में न गोता खाया था सब अपने न ,कोई पराया था झगड़े तब भी होते थे पर अपनापन न खोते थे रिश्तों की उद्ध  डन को सी लेती थी माँ समन्वय और समझौते से हर रिश्ता माँ ने संवारा था वो बचपन कितना प्यारा थाकोई चिंता चित्त में न होती थी मासूमियत ममता के आंचल में सोती थी रूठे को मनाना आता था सहजता का दामन भाता था माया के दलदल में न गोता खाया था सब अपने न ,कोई पराया था झगड़े तब भी होते थे पर अपनापन न खोते थे रिश्तों की उद्ध  डन को सी लेती थी माँ समन्वय और समझौते से हर रिश्ता माँ ने संवारा था वो बचपन कितना प्यारा था