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मेरी

मां जाई

मात पिता का अक्स देखना हो तो, देख लो मां जाई में। बहुत ही ठंडक मिलती है, सच इसकी परछाई में।।

आज भी आई,कल भी आई

बेटी

दस्तक thought by snehpremchand

उम्र की चादर पर जब अनुभवों की पड़ने लगी सलवटें ,ज़िन्दगी सिमटी सिमटी सी हो आई। कतरन कतरन जाने कितनी ही यादों की, धुंधली धुंधली सी अनेकों परछाई ।। जब माज़ी की चौखट पर दस्तक दी उन्होंने, लेने लगी लम्बी सी अंगड़ाई।।           स्नेहप्रेमचंद