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ज़रूरत और ख्वाहिश

ज़रूरत और ख्वाईश एक दिन कुछ ऐसे बतलाई। तुम ज़रूरी या मैं ज़रूरी  ख्वाईश ने ऐसी आवाज़ लगाई। ज़रूरत बोली सुन मेरी बहना तुम रहती है धनवानों के यहाँ, मैं तो निर्धन की अमानत हूँ। रोटी कपड़ा और मकान हैं मेरे बच्चे,मैं हर इंसा की ज़रूरत हूँ।