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किरदार poem by snehpremchand

अपना सब कुछ छोड़ कर एक नए ही आशियाने को बड़े प्रेम से महकाती है। और नही कोई,है वो सृष्टि की धुरि नारी जो बड़ी बखूबी से जाने कितने ही किरदार निभाती है। जाने कितने ही झगड़ों को वो खामोशी से समझौतों का तिलक लगाती है।। कोमल है कमज़ोर नहीं, वो बेगनो को अपना बनाती है।।            स्नेहप्रेमचन्द