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Poem on mother's day पूछता है जब कोई जन्नत है कहां????विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा

पूछता है जब कोई," जन्नत है कहां??? हौले से मुस्कुरा देती हूं मैं और याद आ जाती है मां।। पूछता है जब कोई," क्या कभी ईश्वर को देखा है????  हौले से मुस्कुरा देती हूं मैं और देखती हूं मां की तस्वीर को और दे देती हूं जवाब **देखो ईश्वर है यहां** पूछता है जब कोई  सुकून है कहां??? हौले से मुस्कुरा कर देती हूं जवाब मैं,**है मेरी मां का आंचल जहां** पूछता है जब कोई पर्व उत्सव उल्लास शिक्षा संस्कार हैं कहां??? हौले से मुस्कुरा कर देती हूं जवाब मैं,   ***मेरी मां है जहां*** पूछता है जब कोई मायका है कहां???? हौले से मुस्कुरा देती हूं मैं और देती हूं जवाब **रहती है जिस घर में मेरी मां**

जन्नत है कहां???

जन्नत है कहां???

पूछता है जब कोई जन्नत है कहां?? अनायास ही निकल जाता है दिल से,जन्नत तो सिर्फ और सिर्फ होती है मां।। बिन शर्तो के केवल होता है,  जग में मां का निश्छल प्यार। मां तितर बितर से हमारे व्यक्तित्व को,   दे  देती है सुंदर आकार।। पूछता है जब कोई सुकून है कहां?? सोचने लगती हूं मैं, याद आ जाती है मां।। शक्ल देख हरारत पहचानने वाली मां   निभाती  है जीवन में अनेक किरदार। कभी पत्नी,कभी बहू,कभी भाभी,कभी मां,प्रेम की सदा करती बौछार।। पूछता है जब कोई विश्वास है कहां?? कोई  मशक्कत नहीं करनी पड़ती जेहन को,हौले से याद आ जाती है मां।। पूछता है जब कोई विश्वास और सुरक्षा हैं कहां?? एक ही एक जवाब है इसका, और वो जवाब होती है मां।। पूछता है जब कोई कर्म की गीता है कहां?? कर्मक्षेत्र की होती है एक ही गीता, और वो गीता होती है प्यारी मां।। पूछता है जब कोई विनम्रता,सहन शीलता,धीरज और संतोष है कहां?? और कहीं जाने की क्या है जरूरत, इन चारों का एक ठिकाना, होता है वो प्यारी मां।। पूछता है जब कोई,हिफाजत है कहां?? सोचने लगती हूं मैं, याद आ जाती है मां।। हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध कराने वाली, हमे क्या चाहिए,