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Poem on mother by sneh premchand

माँ माँ की ममता को तोला है तराजू में, औलाद ने, युगों से माँ की दौलत का, तो कर लिया बँटवारा। ममता का बँटवारा नही कर पाए, यहाँ मानव इंसानियत से हारा।। युगों युगों से अधिकारों के,  बँटवारे तो सबको याद हैं, पर भूल जाते हैं अपनी अपनी ज़िम्मेदारी। ध्यान से सोचो याद करने की आ गई है बारी।। ये कहाँ, कैसी कमी रह जाती है परवरिश में, क्यों प्रेम की उनके हिया में,  नही जलती चिंगारी।