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Showing posts from April, 2023

मेहनत की सड़क पर((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

* अपने पसीने के नमक से हमारा जीवन शहद सा मीठा बनाता है मजदूर* *मेहनत की सड़क पर  सतत कर्म का पुल बनाता है मज़दूर* *मेहनत के मंदिर में सदा कर्म की घण्टियाँ बजाता है मज़दूर* *कर्म की कावड़ में  परिश्रम का सतत जल भरता है मज़दूर"  *खुद भारी बोझा उठा  कर औरों को हल्का महसूस करवाता है मजदूर* *जिन महलों में हम चैन से जीते हैं उनको अपने पसीने की बूंदों से निर्मित करता है मज़दूर* *देख कर भी जिसको अनदेखा कर देते हैं हम, सच मे वो होता है मज़दूर* *शाम होने तक काम करते करते थक कर जो हो जाता है चूर* *पूरा दिन अथक परिश्रम के बाद भी अभावग्रस्त सा जीवन बिताता है मजदूर* *औऱ नही,मेरे प्यारे बंधुओं  वो होता है एक सच्चा मज़दूर" *मजदूर के श्रम की कीमत कभी चुका नहीं सकते हैं हम* *हो सके तो बस रहे कोशिश इतनी, कम हो जाएं उसके कुछ तो गम* आधारभूत ज़रूरतें हों पूरी उसकी, मयस्सर हों उसे खुशियां, नयन न हों कभी उसके नम             स्नेह प्रेमचंद

अहंकार और विनम्रता

Suvichar.....ahenkaar or vinamrta.......ek mod per mile jab dono,hua dono me kuch aisa vartalaap.suna jisne WO LGA sochne,mein kya kerta yun kriyaklaap.rehti ho tum DRI DRI si,mein seena taan ke rehta gun.jiski lathi,bheins ussi ki,ye aaz mein Sab se kehta hun.sun USS ki ahenkaar bhri batein,vinamrta mand mand muskaai.kyun nhi samjhe tum yugon yugon se.Jo bat muje h samaj mein aayi.raavan me tum thei,duryodhan me tum thei,gher gher mein tum ne apni jagah bnaii..mein ram me thi,kanha me thi,her paavan aatma ne mere liye bahein feilayi.sun vinamrta ki batein jeet ker bhi haar gya ahenkaar.haar ker nhi jeet gyi vinamrta,tha uska Aisa sanskaar....

ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार

*Twinkle twinkle little star आया काजू तेरे घर द्वार* *हे री! कोई मंगल गाओ री जिंदगी करने लगी खुशियों का श्रृंगार* काला टीका लगाओ री! *बड़े मोहक से हैं इसके दीदार* *काजू सा सच रूप है इसका, पूरा आकर्षण इसका बरकरार*

एक ही वृक्ष के हैं हम(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते, कली और हरी भरी शाखाएं* *विविधता है बेशक बाहरी स्वरूपों में हमारे, पर मन की एकता की मिलती हैं राहें* *कहीं न कहीं मन एक सा है हमारा* *जो एक ही प्लेटफार्म पर आना चाहें* *अधिकार संग आती है जिम्मेदारी भी* *हो बेहतर ये सत्य कभी भूल ना जाएं* *कुछ तो कर्तव्य कर्म हैं हमारे मातृभूमि के लिए, गर दिल से हम करना चाहें* *नजर नहीं नजरिया होता है खास, बदल सकता है बहुत कुछ,  गर सच्चे प्रयासों को सच्चे दिल से अपनाएं* *एक और एक होते हैं ग्यारह* *इस सत्य को हम सही समय पर समझ पाएं* *कुछ लोग भीड़ का हिस्सा होते हैं, कुछ अपने पीछे भीड़ बना देते हैं विकल्प दोनों होते हैं सामने, है,हम पर जिस पर चयन का बटन दबाएं* शब्दों से अधिक दोस्ती नहीं है मेरी, वरना सीधे सीधे बता देती, *क्या छोड़ें और क्या अपनाएं* *समूह मात्र नहीं परिवार है ये* हो बेहतर गर पूरा हिसार  इस परिवार में आए।।

राम से पहले सीता है

नित नित(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कला का नित नित होता विस्तार कला कल्पना को देती आकार कला सपने करती लम्हा लम्हा साकार कला से सुंदर बनता संसार ईश्वर के प्रिय बच्चे होते हैं कलाकार कला कल भी थी आज भी है कल और भी होगा इसका परिश्कार कला कलाकार की कलम है वो, जोड़ देती है जो दिलों के तार नीरसता को हर लेती है कला सरसता का है कला में सार चुन लेता है चुनिंदा लोगों को ईश्वर, कोई लेखक,कोई गायक कोई चित्रकार।। कला ना जाने सरहद कोई, कला ना जाने जाति मजहब का आकार कला ना जाने धनी और निर्धन कला कल्याण का आधार।।         स्नेह प्रेमचंद

मैने पूछा(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मैने पूछा जोश से, जोश ने पूछा जज्बे से, जज्बे ने पूछा जुनून से, जुनून ने पूछा मेहनत से, मेहनत ने पूछा जिजीविषा से,।जिजीविषा ने पूछा लगन से, लगन ने पूछा सौंदर्य से, सौंदर्य ने पूछा स्वच्छता से, स्वच्छता ने पूछा आनंद से, आनंद ने पूछा उल्लास से, उल्लास ने पूछा शिक्षा से, शिक्षा ने पूछा संस्कार से, संस्कार ने पूछा सामंजस्य से, सामंजस्य ने पूछा जिज्ञासा से, जिज्ञासा ने पूछा जागरूकता से, रहते हो कहां?????? सब एक ही सुर में बोले झट से और कहां??? *हमारा प्यार हिसार परिवार है जहां*

आता है आनंद मुझे

*आता है आनंद मुझे प्रकृति के इन नजारों में* *रूह तृप्त हो जाती है* क्या लेने जाऊं बाजारों में???

हाथ हों बेशक नन्हें(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*हाथ हों बेशक नन्हें पर जोश है पूरे परचम पर लहराया* *कल मोहताज नहीं होती किसी उम्र की, देख इस लाडो को समझ में आया*

*आते हैं दौड़े हर इतवार को*(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*आते हैं दौड़े हर इतवार को दिल से सलाम है ऐसे परिवार को* मैने पूछा जोश से, जोश ने पूछा जज्बे से, जज्बे ने पूछा जुनून से, जुनून ने पूछा मेहनत से, मेहनत ने पूछा जिजीविषा से,।जिजीविषा ने पूछा लगन से, लगन ने पूछा सौंदर्य से, सौंदर्य ने पूछा स्वच्छता से, स्वच्छता ने पूछा आनंद से, आनंद ने पूछा उल्लास से, उल्लास ने पूछा शिक्षा से, शिक्षा ने पूछा संस्कार से, संस्कार ने पूछा सामंजस्य से, सामंजस्य ने पूछा जिज्ञासा से, जिज्ञासा ने पूछा जागरूकता से, रहते हो कहां?????? सब एक ही सुर में बोले झट से और कहां??? *हमारा प्यार हिसार परिवार है जहां*

समाधान हेतु आगमन,संतुष्टि सहित प्रस्थान(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

* समाधान हेतु  आगमन संतुष्टि सहित प्रस्थान* *हमारा प्यार हिसार परिवार* की यही सच्ची पहचान* *मुस्कान ही है जिनका परिधान* *हर समस्या का खोज लेते समाधान* सौ बात की एक बात है मूल में इसके जनकल्याण  कोई और नहीं हैं, ये कर्मठ,हमारा प्यार हिसार के बाशिंदे,  *कर्मानंद ही है जिनकी पहचान* *चले आते हैं भोर में ही, करने सार्थक अपना इतवार* *ऐसे मांझी हैं ये मतवाले* *बखूबी थामे हैं अपनी पतवार* *न दिन देखते हैं न रात देखते हैं* जोश,जज्बे,जुनून का मिला इन्हे वरदान।। *कुछ  रोक नहीं सकता इन्हें, चाहे आंधी हो या तूफान* मातृ भूमि का ऋण चुकाने, गंतव्य  हेतु करते प्रस्थान *सच मुस्कान ही है इनका परिधान* *सार्थक हो जाती है मेरी लेखनी,  जब चलती है  इन पर  सतत,अविलंब अविराम* *समूह नहीं परिवार है ये* *सब कर्मठता का करते हैं आह्वान* *समाधान हेतु आगमन, संतुष्टि सहित प्रस्थान* *मूल में जनकल्याण है इनकी सोच में* *अदभुत हैं सदस्य सारे, विलक्षण है इनका बागबान* *आप भी आओ हम भी आएं, लक्ष्य है एक ही,हो सुंदर जहान* *आने वाली पीढ़ियों के लिए  विरासत होगी यही सच्ची, * मैं भी जानूं,तूं भी जान* कोई राग नहीं,कोई द्वेष नहीं कोई

उपहार

**एक दो तीन चार** बड़ा प्यारा होता है उपहार *मोल नहीं हो सकता कोई इसका सत्य जाने सारा संसार**   भाव जुड़े होते हैं इससे प्रेम ही इसका होता आधार दिल पर दी जाती है सीधी दस्तक बज उठते हैं दिल के तार  

हौले हौले शनै शनै(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

*हौले हौले शनै शनै*  दिन ये एक दिन आ ही जाता है। *कार्य क्षेत्र से हो सेवा निवृत* व्यक्ति घर लौट के आता है।। *जाने कितने ही अनुभवों का टीका जिंदगी भाल पर लगाता है* *कभी छांव कभी धूप सी जिंदगी, पर वो आगे बढ़ता जाता है* धनोपार्जन कर कार्यक्षेत्र में, पूरा परिवार चलाता है। *ब्याह,शादी बच्चों का कैरियर  हर रोल बखूबी निभाता है* *सपने बुनते बुनते कब लम्हे उधड़ जाते हैं, सोचने का वक्त नहीं मिल पाता है* यादों का चल पड़ता है कारवां, सफर जिंदगी का, चलता जाता है।। *भागदौड़ की उस जिंदगी में, एक शीतल सा विराम अब आया है* *जैसे कोई थका सा पंथी तरुवर की छाया में आया है* *अब न होगा कोई समय का बंधन, अब वक्त अपने ढंग से जीने का आता है* *हौले हौले शनै शनै* दिन, ये एक दिन आ ही जाता है।। *अब समाज के लिए  कुछ करने का वक्त भी आया है* *अब जिंदगी का रिमोट है खुद के हाथ ही,जैसा चाहा वैसे ही सबने चलाया है* *अब अपने शौकों को परवान चढ़ाना* *जाड़ों की गुनगुनी धूप में जी भर अलसाना* *सागर किनारे मचलती लहरों संग रास रचाना* *खूब लगाना ताशों की बाजी, पाक कला को भी चमकाना* *जगह जगह पर घूमने जाना* *अच्छे संगीत,

कर्मभूमि के रंगमंच पर(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*कार्यक्षेत्र से हो सेवानिवृत एक अच्छा सा जीवन बिताना* *ना होगा अब कोई समय का बंधन अपने मन की सुनते जाना* *कर्मभूमि के रंगमंच पर निभाया बखूबी आपने अपना हर किरदार* लम्हा लम्हा कर आ गया पल सेवानिवृति का, मिलें आपको खुशियां बेशुमार* इसी दुआ का हम सब गा रहे हैं मधुर तराना हसरतें और हैसियत मिलें एक ही मोड़ पर,  हर चाहत को पूरा करते जाना।। कार्यक्षेत्र से हो सेवानिवृत, एक अच्छा सा जीवन बिताना। स्वस्थ सरल सहज सा जीवन, हो बस आगे का यही फसाना।। *बहुत बड़ा शुभ दिन है यह जो  आपके जीवन में आया*  *जाने कितनी यादों ने होगा  इस दिन को महकाया*  *आज  कार्यालय से आप हमारे मधुर स्मृतियों का ले जाना खजाना।  कार्य क्षेत्र से हो सेवानिवृत्त एक अच्छा सा जीवन बिताना।।  बहुत बड़े जीवन का हिस्सा  कार्यालय में आपने बिताया है।  कुछ खट्टी कुछ मीठे अनुभवों ने  जाने क्या-क्या सिखाया है।। बहुत सीखा है और भी सीखोगे  आगे और भी सीखते जाना।  हो मन में अगर कोई शौक और इच्छा उसको अब पूरे मन से निभाना।।  कार्यक्षेत्र से हो सेवानिवृत्त एक अच्छा सा जीवन बिताना । आज विदाई की इस बेला पर,  हम सब गा रहे हैं यही तराना।।

लहर उठी विश्वास की(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

लहर उठी विश्वास की  पिता खड़े जिस ओर*  *लंबी काली रात की,  पिता उजली सी भोर*  *ऊपर से हैं सख्त दिखे, पर चित मोम सा होय* *हर पीड़ा छिपा हंसते रहे,  चाहे भीतर भीतर रोय* *ऊपर से गर्म,भीतर से नरम* *पिता सम कोई जग में न होय* *पर्वत से अडिग होते हैं पिता, कभी धीरज न खोय* *खुद से आगे बढ़े औलाद प्रबल भाव जिया में होय* *अधिकार रहते हैं मुस्कुराते जब तलक पिता जगत में होय* *जिम्मेदारी का ओढ़ दुशाला पिता कभी करे ना शोर*  *लहर उठी विश्वास की पिता खड़े जिस ओर* *लगन,मेहनत पर संग मुस्कान के, पिता देते हैं सदा सिखाय* *बातें बेशक लगें कड़वी उनकी पर जो माने सुख पाय* *अनुभूति में प्रथम पिता हैं* *इजहार की बेशक न पकड़ी हो डोर* *लहर उठी विश्वास की पिता खड़े जिस ओर* *अनबोला अनकहा है नाता तात तुम्हारे साथ* *दे दो तुम आशीष मुझे मेरे सिर पर रख कर हाथ* *तुम मोम से नरम हो पापा बेशक जग कहे तुम्हे कठोर* *लहर उठी विश्वास की पिता खड़े जिस ओर* *आस तुम्हीं,विश्वाश तुम्हीं सच तुम हो ईश्वर समान* *मंदिर,मस्जिद, गिरिजाघर में  व्यर्थ भटक रहा इंसान* *बहुत छोटा है शब्द कहना तेरे लिए मेरे तात महान* *ईश्वर का पर्याय

खामोशी की जो समझ लें जुबान

खामोशी की जो समझ लें जुबान वही मित्र हैं मन मिलने से जिनके लिए रहता है तलबगार,वही मित्र हैं

मैने पूछा दोस्ती से

मैने पूछा दोस्ती से

लम्हा लम्हा

लम्हा लम्हा बीते हैं पल पल पल बीत हो गए 80 साल जन्म देने वाली मां को जन्मदिन मुबारक, मां जानती है बिन बताए दिल का हाल सच में मां उत्तर है,हैं गर हम सवाल अपनी जान पर खेल हमें इस जग में लाने वाली मां सच में होती है कमाल ना भूलें हम इसके प्रति अपनी जिम्मेदारी, सच में मां होती है अद्भुत मिसाल हर संज्ञा,सर्वनाम विशेषण का बोध करवाने वाली हर कब क्यों कैसे कितने का उत्तर बन जाने वाली जीवन के हर मोड़ पर साथ निभाने वाली शक्ल देख  हरारत पहचानने वाली हमें हम से बेहतर जानने वाली मां जिंदगी की किताब का सबसे सुंदर सबसे प्यारा अध्याय है।इस अध्याय सागर को जितना पढ़ते जाओगे ,उतने ही मोती पाओगे।। धड़धड़ाती ट्रेन से वजूद वाली मां के आगे बच्चों का अस्तित्व थरथराते पुल सा हो जाता है।। मानों चाहे या ना मानो,ये सत्य है।। *मां की ममता का इस जग में दूजा कोई विकल्प नहीं*

सुपुर्द ए खाक

अंतोत गत्वा हो हमे हो ही जाना है सुपुर्दे खाक, बेहतर है हम रखें अपनी रूह को पाक, आत्मा मिल जाएगी परमात्मा से, तन की  हो जाएगी राख।

एक ही राम थे

अक्षर ज्ञान भले ही ना हो(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

अक्षर ज्ञान भले ही ना हो, पर मां को चेहरा पढ़ना आता था। शक्ल देख हरारत जान लेती थी,  मां से दिल का बहुत ही गहरा नाता था।। हर समस्या, समाधान से हाथ मिला लेती थी जब साथ था मां का, चित चिंता मुक्त हो जाता था।। मां जीवन का वो दर्पण थी, जिसमे अक्स अपना नजर आता था।। *उपलब्ध सीमित संसाधनों* में भी मां को उत्सव मनाना आता था हर कर्म को करती थी आनंद से, मां का जिजीविषा से पुराना नाता था वो कैसे सब कुछ कर लेती थी? न आज समझ में आता है, न पहले ही समझ में आता था।। मां तो सच *जन्नत* का नाम है दूजा, मां से रिश्ता पल पल हिना सा गहराता था।। **मां कहीं नहीं जाती** रहती है विचारों में सदा, जिक्र आज भी उसका भाता है, जिक्र कल भी उसका भाता था। मां का स्नेह एक संपूर्णता सी लिए हुए था भीतर, मां जैसे जलजात के संग मन सागर सा हो जाता था।। जो लम्हे गुजारे संग मां के, हैं,आज भी वे मेरी अनमोल धरोहर,कैसे वक्त संग मां के पल भर में गुजर  जाता था।। मां से बेहतर कोई मित्र नहीं हो सकता,मां से सच में गुरु,सलाहकार और पथ प्रदर्शक का नाता था।।

लेखन सीखना नहीं पड़ता

कोई भी रिश्ता अचानक नहीं मरता,(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)(

*जब संवाद खत्म हो जाता है फिर संबंध पड़ा सुस्ताता है* *नहीं मरता कोई रिश्ता अचानक हौले हौले दरक सा जाता है* दोनों ही ओर से जब होती नहीं कोशिश, फिर वो जमींदोज हो जाता है।।

एक से भले चार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*एक,दो,तीन,चार* *बड़ा प्यारा मित्रों का परिवार* *सांझे गम और सांझी खुशियां* *कभी दोस्ती कभी तकरार* *निरस्त नहीं दुरुस्त करने में हैं यकीन इनका* *ऐसे इनके उत्तम विचार* *ना छोड़ते हैं ना तोड़ते हैं दोस्ती* *भरनी आती हैं इन्हें हर दरार* *एक,दो,तीन,चार* *बड़ा प्यारा मित्रों का परिवार* *सुख दुख दोनों में संग खड़े हैं,   आते हैं लेने इन्हें दर्द उधार* * लफ्ज़ नहीं  लहजे पहचान लेते हैं ये* *अच्छे मित्र  नहीं मिला करते बार बार* *हर दिन होली  हर रात संग इनके,  होती है दीवाली* *हर पल बन जाता है  उत्सव संग में* *पूनम बन जाती है  हर मावस काली* *हास परिहास  मगर संग सम्मान के* *यही मित्रता का  होता आधार* *एक,दो,तीन,चार* बड़ा प्यारा मित्रों का परिवार दो मित्र यहां,दो मित्र वहां यूं हीं चलता रहता है संसार जो बहुत खास होते हैं जग में मन चाहता है करना दीदार आवागमन तो दस्तूर ए जहान है समझाया दिल को जाने कितनी ही बार

एक दिन एक मोड़ पर

suvichar.......ek din ek mod per mon aur shabd mil jate h,batein kerte hein,shabd kehta gya,bahut kuch,jo bhi ji me tha sab kuch,mon to mon tha,yani chup tha,uski chupi se shabad chhid jata h,kehta h kai bar mein shabd ho ker anekanek abhivyaktiyon ke sath bhi wo nhi keh pata jo tum mon reh ker samja dete ho aisa kaise h,mon ne sirf yeh kha keriye zyada boliye kam,shabd niruter tha,ab mon hone ki uski bari thi.....

दूसरे से पहले हमे

न मीरा न राधा

न मीरा,न राधा, न सीता न यशोध्रा,न उर्मिला, और न ही बनना है गांधारी, हुआ न्याय क्या संग किसी के, जाने ये दुनिस सारी।।

रूठना भी तब अच्छा लगता है

*रूठना भी तब अच्छा लगता है जब कोई मनाने वाला हो* *रोना भी तब अच्छा लगता है, जब कोई आंसू पोछने वाला हो* *गुनगुनाना भी तब अच्छा लगता है जब कोई सुनने वाला हो* *सजना भी तब अच्छा लगता है जब कोई देखने वाला हो* * कहीं जाना भी तब अच्छा लगता है जब कोई बुलाने वाला हो* *इंतज़ार करने वाला हो *मायका भी तब अच्छा लगता है* *जब वहां मा बाबा हों*

मुझे कुछ कहना है

**मुझे कुछ कहना है** **दिन चार यहां पर रहना है** *जिंदगी एक किराए का घर है* **खाली करने का बिछौडा सहना है** फिर क्यों गिले शिकवे नाराजगियां?? *प्रेम ही सच्चा गहना है* इसने,उसने ये कहा क्यों कहा? छोड़ो ये सब, करुणा ही प्रेम की छोटी बहना है।।

जहां वास हो सत्कर्म का

कमाल सदस्य कमाल सूत्रधार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

मैने पूछा खुशी से(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मैने पूछा खुशी से रहती हो कहां??? हौले से मुस्कुरा दी खुशी और बोली और कहां?? *हमारा प्यार हिसार* परिवार *हर इतवार आता है जहां*

फिर एक बार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

*आ जाते हैं दौड़े दौड़े हर बार* *ऐसे ये रंगरेज अनोखे* *करने सार्थक अपना इतवार* *बदरंग दीवारों पर रंग खिला कर हिसार को कर देते हैं गुलज़ार* *आप भी आओ,हम भी आएं किस बात का है इंतजार????

हम किसी से नाराज़ क्यों होते हैं( भाव स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

Suvichar.....ham kisi se naraz kyun  hotel hein?kuch khas ye hein karan....over expectation,sabse bda karan,kadwa saty bolne ke karan,aainaa dikhane ke karan,KTU vachon ke karan,comparison ke karan,purvagrah ke karan,kissi bat ki ganth band lene ke karan,aise bahut se karan ho sakte h,per iss ka uppay dundna ho to behti nadiya se pucho,Jo marg ki sari gandgi ko apne me sma ker sang le jati h,ganda nala kunthit man ke saman h,nadiya bno,nala nhi,spastikeran mango,khul ker bat kro,per ganth na bandho,aap hi kholte reh jaoge,khol nhi paoge,naraaz hona aasan h,shama kerna mushkil,vikalp dono h,chun na to aap ko hi hoga,kya socha?

POEM ON EARTH DAY प्रकृति एक कैनवास,ईश्वर कलाकार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

* ऐसी हो सबकी शिक्षा ऐसे हों पल्लवित संस्कार* *प्रकृति एक कैनवास  ईश्वर कलाकार* *अंबर, धरा, दिनकर,चंदा तारे  कितना प्यारा सा परिवार* *पेड़ पौधों से आच्छादित धरा ने  अगणित पुष्पों से किया श्रृंगार* *इठलाती नदियां,तपस्वी से पर्वत नयनाभिराम जिनके दीदार* * ऐसी है यह धरती मां*बाहें फैलाए बच्चों पर ममता लुटाने को तैयार * *प्रकृति एक कैनवास  परमेश्वर कलाकार* * पिता तुल्य नीला अम्बर*  संरक्षण,विश्वास,सुरक्षा  का करवाता दीदार* * युगो युगो से हमें पोषित करती  मां धरा ने,  कभी अपनी थकान का ना करवाया आभास* कभी पतझड़,कभी बसंत,कभी शिशिर,कभी ग्रीष्म  हर मौसम का हुआ इसमें निवास  *नदी, नाले ,पेड़,पौधे,पर्वत,वायु सागर धरती मां के स्थाई परिधान*  *प्रदूषित हो गई संपूर्ण प्रकृति,  हुआ मैला आंचल मां धरा का, चेहरे पर अब लगती है थकान* *बहुत सो लिए,अब तो जाग लें आओ धरा का अस्तित्व बचाएं*  *वन्यजीवन,पर्वत, नदियों का जल संरक्षित कर के,  नवजीवन सा फिर ले आएं* *ओजोन आवरण* को बचाने का करे सब भरपूर प्रयास क्या धरोहर देंगे वरना आगामी पीढ़ियों को हम, *जब सही से ले भी नहीं पाएंगे वे श्वास* *प्लास्टिक,वातानुकूलित यंत्र

Earth day special सोचो सुधारो,संवारो धरा को(( विचार स्नेह प्रेमचंद))

*कहते हैं आज *पृथ्वी दिवस* है, होता नहीं इस कथन पर विश्वास* कौन सा दिन है बिन धरा के??? *सच धरती है मां,पिता है आकाश*  **सोचो,सुधारों,संवारो**  अपनी धरा को, *और न हो अब  पर्यावरण का ह्रास* *प्रदूषण गर फैला  इसी गति से, होगा कैसे धरा पर  जीवन का वास?? *जल,ध्वनि,वायु,भोजन सभी प्रदूषण हैं आज कुछ हद से आगे* कैसे रहे पर्यावरण शुद्ध हमारा?? *जब कर्तव्य कर्मों से हम सब हैं भागे* *सांझे से प्रयास हमारे, वातावरण को बना सकते हैं खास* *सोचो,सुधारो,संवारो * अपनी धरा को, और ना हो अब पर्यावरण का ह्रास।। *उस देश के वासी हैं हम, जहां धरती को माता कहते हैं* *फिर मां की कोख कैसे उजाड़ सकते हैं हम, हम तो मां के दिल में रहते हैं* मां का आंचल ना हो मैला, कोई करे भी तो हम क्यों मिल कर सहते हैं???? विचारो,लो प्रण ऐसा, *प्रकृति का हनन ना हमे आए रास* प्रदूषण गर फैला इसी गति से, कैसे होगा धरा पर जीवन का वास?? *आओ धरा का अस्तित्व बचाए* शुद्ध हवा में हर प्राणी ले पाए श्वास तेरी मेरी नहीं, है,ये सामूहिक जिम्मेदारी,  *हो सबको इस का आभास* *कहीं लगाए त्रिवेणी* *कहीं औषधीय पौधों से हो धरा का सुंदर श्रृंगार

कैसी थी धरा अब कैसी हो गई(( विचार स्नेह प्रेमचंद छायाचित्र रचना सैनी)

मित्र है तो(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

मित्र है तो  गिरी समान दुख  भी कोई दुख नही, मित्र है तो  हर  समस्या का  समाधान है, मित्र है तो  जीवन की  डगर आसान है, मित्र है तो धरा तो क्या  अपना ही आसमान है, मित्र है तो अग्निपथ सा  जीवन भी आसान है निरस्त नहीं दुरुस्त कर देता है दोस्ती का नाता मित्र, मित्र होना भी ईश्वर का वरदान है।। मित्र है तो सागर की थाह भी  मिल जाती है, मित्र है तो हर कली प्यारा सा  कुसुम बन जाती है।। मित्र है तो हर  डगर  सरल बन जाती है मित्र है तो फिर याद कहां  और किसी की आती है।। *सुमन की महक है मित्र* *सागर का नीर है मित्र* *प्रकृति में जैसे समीर है मित्र* "जीवन का मधुर सा संगीत है मित्र* " ऊर्जा है उलास है रीत है प्रीत है मित्र* *रेगिस्तान में हरियाली है मित्र* "गायन में जैसे कवाली है मित्र* "सकारात्मक सोच की मोहर है मित्र* *हमारी मुस्कान के पीछे छिपी उदासी पढ़ लेता है मित्र* *मैं हूं ना* जैसे संबोधन से चित हर लेता है मित्र *जीवन के बैंक में अनमोल सी एफ डी है मित्र जो आजीवन अपने सहयोग और समय का ब्याज देता रहता है।। *सच्चा बैंक बैलेंस है मित्र* *खुशी हो जाती है संग दूनी जिन

मां जाई ही जान सकती है

Only a sister knows how you really felt when you stumbled and when you succeeded, when you fell from grace and when you were forsaken, when you reached your lowest valley and when you climbed your highest mountain. “ I knew my sister like I know my own mind. You will never find anyone as trusting or as kind as she was . She was full of compassion.  I loved her more than anything in this life.  I will choose her to be my sister in other life times . If I found to make a wish right now, it would be that you are here listening to me like you always do; I miss you so much, bestie.  There are so many reasons to be happy in life. You showed me how to be happy through you .. any tough situation couldn’t take away your serene smile and calmness and faith . Being your sister always made me feel proud .  Your selflessness always amazed me . Each time I remember all the moments we shared, I wish we never had to separate like this.  You were a Godsend sister . Your heart was so pure an

आदत

जब पद हावी हो जाता है

संकल्प ने जब पूछा सिद्धि से(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

दूर गगन में

दूर गगन में जो सबसे अधिक चमक रहा है तारा, निश्चित रूप से है कोई हमारा,जो लगता था,लगता है,लगता रहेगा हमे बहुत ही प्यारा।।

मैने पूछा प्रेम से

खुशी और गम

सोच कर सोचो साथ क्या जाएगा

Suvichar........soch ker socho sath kya laye thei,sath kya le ker Jana h,yhin se liya h,yhin dena h,phir achha hi dene ki kosish kyun na krein.achhi soch se ham prabhavit hon,achha h,per hmari soch ka remote kisi or ke hathon me ho,ye galat h,chahe WO hmara kitna hi Aziz kyun na ho.soch se karm,karm se prinam nirdharit hote hein,ager ham apne vivek or apne dil se soch hi nhi sakte,to phir kaisa loktantr?apni prathmiktaon ke bare me hme khud sochna h,kyunki her vyakti visesh h,shi samay per shi soch ker shi karm kerna bahut zruri h,samay beetne ke baad sochne se kuch nhi hota,zra sochiye

अच्छा लगता है मुझे(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))