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पिता है तो चिंता फिर किस बात की??( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

 पिता है तो चिंता  फिर किस बात की??? पिता तो हमारे हर दर्द  को  सहलाता है। *पिता बरगद सा शीतल साया* *मेरी समझ को तो  यही समझ में आता है।।  *बेहतर से बेहतरीन करने की  चाह में जो सारा जीवन बिताता है* पिता ही होती है वो शख्शियत, जो सदा मुस्कान बच्चों के  लबों पर लाता है। पिता है तो चिंता फिर किस बात की?? पिता तो हमारे हर जख्म पर  मरहम बन जाता है। पिता सा कोई हमारा *खैरख्वाह* नहीं, मेरी समझ को तो यही समझ में आता है।। *बच्चों को अपने से आगे बढ़ते हुए देख कर जो मुस्कुराता है* हर 🌞 सन शैडो में जो सदा बच्चों का साथ निभाता है।। ऐसा जग में होता सिर्फ और सिर्फ पिता का नाता है।। परिकल्पना से प्रतिबद्धता,प्रतिबद्धता से प्रयास तक का सफर पिता ही पूरा करवाता है।। पिता है तो चिंता फिर किस बात की???? पिता की गोद में तो सारा संसार सिमट जाता है।। *पिता है तो बाजार का हर सामान अपना है* *पिता है तो पूरा होता हर  सपना है* पिता है जब तक शौक होते हैं पूरे, हमारे शौक के लिए पिता अपनी जरूरतें भुलाता है।। संकल्प से सिद्धि तक के सफर में पिता अपना पूरा दायित्व  निभाता है। ख्वाब बन जाएं हमारे हकीकत, इसी