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मशक्कत करनी पड़ती है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*मशक्कत* करनी पड़ती है किसी भी मारसिम को मजबूत बनाने में। *दौर ए कश्मकश*में गुजर न जाए जिंदगी, बागबान लगा रहता है  *बहार ए चमन* लाने में।। एक तूं ही थी ऐसी जो सहजता से किसी भी नाते की पल भर में अपना बना लेती थी। *दौर ए कश्मकश* में भी मुस्कान अंधेरों पर अपने सजा लेती थी।। अंदाज ए गुफ्तगू भी सच में तेरा ओ मां जाई! था बहुत ही शानदार। धड़धड़ाती ट्रेन सा वजूद तेरा,सच में था बहुत ही जानदार।।       स्नेह प्रेमचंद

नाम भी,काम भी

तल्खियां

लहज़े में

Thought on flower by sneh premchand महक

फूलों ने अपने वजूद की महक से, एक पाठ तो बखूबी सिखाया है। बेशक हों दामन में कितने ही कांटे, पर सुमन ने अपनी महक से पूरा चमन  महकाया है।। पुष्प के जैसे ही कुछ तो  होते हैं लोग भले, बेशक हों राह में लाख मुसीबत, पर सुकून भरा होता उनका साया है।।           स्नेह प्रेमचंद

दरार thought by snehpremchand

दरार चाहे दीवार में हो या  हमारे वजूद में हो दरकने का खौफ तो दोनों को ही होगा। दीवार गिरेगी तो मकान टूटेगा, पर वजूद चोटिल हुआ तो घर टूटेगा। इस सूरत ए हाल में दो राहें हैं या तो मरम्मत या फिर बिखराव अहसास ए जुर्म होगा तो मरम्मत  की जा सकती है, पर वही पहले सी फ़ितरत रहेगी तो बिखराव ही एकमात्र रास्ता है, हमारा चयन ही हमारे भाग्य को निर्धारित करेगा चयन कर्म का ही दूसरा नाम है। मरम्मत मकान और घर  दोनों को बचा सकती है, बिखराव तो बहुत ही गहरे  मारसिम का  कत्ल ए आम कर देगा। सोच,कर्म,परिणाम की त्रिवेणी  सदा संग संग बहती आई है, जैसी सोच,वैसे कर्म,वैसे ही परिणाम।। स्नेहप्रेमचन्द मारसिम---रिश्ता

दरार thought by snehpremchand

कई बार अज़ीज़ भी बन जाते हैं अग्यार कहीं न कहीं वजूद में आ जाती है कोई दरार।।           स्नेहप्रेमचंद