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प्रेम की बरखा है मां((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

श्रद्धा से जो किया जाए, उसे श्राद्ध कहते हैं। बेहतर को बेहतरीन बनाने के लिए, मात पिता जाने क्या क्या सहते हैं।। प्रेमबरखा में ममता के जल की बूंद है माँ,पर्व है माँ,उल्लास है माँ,सबसे जीवन मे खास है माँ,आकर्षण है माँ,समर्पण है माँ,कर्म है,विनम्रता है,त्याग है,अनुराग है,धीमी धीमी आँच पर सौंधी सौंधी खुशबू वाला साग है,सुर सरगम संगीत है,सबसे प्यारी रीत है।। जिंदगी की किताब के हर किरतास पर नजर,मां तूं ही तूं आती है। बस गई है जेहन में ऐसे,जैसे एक सांस आती है,एक सांस जाती है।। आज मां का श्राद्ध है,आज हाथ जोड़ हम ईश्वर से विनती करते हैं। कर बद्ध हम कर रहे,परमपिता से यह अरदास। मिले शांति मां की दिवंगत दिव्य आत्मा को,है प्रार्थना ही हमारा प्रयास।।         स्नेह प्रेमचंद