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मधुर आगमन,असहनीय प्रस्थान(( विचार स्नेह प्रेमचंद मां जाई द्वारा))

*मधुर आगमन,असहनीय प्रस्थान* **मधुर तेरा आगमन असहनीय  तेरा प्रस्थान** बहुत छोटा शब्द,तेरे लिए महान 11 स्वर,33 व्यंजन भी नहीं सक्षम, जो कर पाएं तुझे बयान।। *लम्हे ने की खता* बन गई, अविस्मरणीय दास्तान।। वक्त पूछेगा लम्हे से, क्यों ये कर डाला तूने नादान।। *संवाद भी मधुर तेरे, खामोशी भी करती रहती थी हैरान** कठिन से कठिन राहों को भी  बना देती थी आसान।। कथनी में नहीं करनी में था विश्वास तेरा, कर्म ही बने तेरी पहचान।। अच्छे दिल, दिमाग और व्यवहार की त्रिवेणी तूने सदा बहाई, गंगोत्री से गंगासागर तक तेरी यही पहचान।। भाव थी, तूं शब्द नहीं, अहसास थी तूं अभिव्यक्ति नहीं, छोटा है शब्द तेरे लिए महान।। नहीं बनी शब्दावली कोई ऐसी, जो तेरा कर पाएं बखान।। और परिचय क्या दूं तेरा??? अजब तेरी सोच गजब तेरा ज्ञान।। मधुर वाणी संग, रही सदा लबों पर मधुर मुस्कान।। रुकने का नाम लेती नहीं ये लेखनी, यही तेरे *औरे*की पहचान।। एक ही परिवेश,एक जैसी परवरिश पर सबके लिए अलग अलग होता है ये जहान।। सबका अपना अपना सफर,अपनी अपनी मंजिल, तेरा होना ही था धरा पर जैसे ईश्वर का वरदान।। जग से जाने वाले जेहन से भी जाएं ज़रूरी तो नहीं, तूं