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सर्विस विद स्माइल(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*सर्विस विद स्माइल* किसी भी *वित्तीय संस्थान की रूह*  के खिताब की हकदार एक संतुष्ट ग्राहक जोड़ देता है  १०० ग्राहकों को, है इस सत्य में सार ही सार जटिल से जटिल कर्म  हो जाता है सरल, गर चित में इच्छा और चेहरे पर हो मुस्कान बड़े से बड़े लक्ष्य ही जाते हैं पूरे, बस सही दिशा में पूरे जोश से बढे कदमों के निशान *मेहनत खटखटा ही देगी  उपलब्धि के द्वार*  *सुखद वर्तमान और उज्जवल भविष्य के होंगे दीदार* *संकल्प से सिद्धि*  तक के सफर में, होते हैं खास  सिर्फ और सिर्फ प्रयास जीवन सही मायनों में  बन जाता है उत्सव, मंजिल आ ही जाती है पास *परिकल्पना,प्रतिबद्धता और शिद्दत से किए गए प्रयास* बुलंद हौसले,सकारात्मक सोच,निश्चित होता है फिर होना विकास *कर्म बोझ नहीं आनंद है* कर्म जिजीविषा का सदा करते श्रृंगार मधुर वाणी,मुस्कान लबों पर,  व्यक्ति के सच्चे अलंकार कर्म ही असली परिचय पत्र होते हैं व्यक्ति का,  वरना एक ही नाम के व्यक्ति हजार कभी कभी मिली असफलता भी सफलता की ओर बढ़ता कदम है, तनिक करो इस कथन पर विचार *ग्राहक देवो भव* गांधी जी के इस  कथन का महत्व अपार वह नहीं हम निर्भर हैं उस पर, करें दिल से स्वागत है