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Showing posts from July, 2020

Festival of rakhi by sneh premchand

फिर से आई है यह राखी,  फिर मिलने का मौसम आया है।  कितना मधुर, कितना सुंदर  होता भाई का साया है।। फिर पड़ गए बागों में झूले,  शाख शाख पर, पात पात लहराया है।  फिर से आई है यह राखी,  फिर मिलने का मौसम आया है।  नए रिश्तो के नए भंवर में,  बहना तो उलझी उलझी सी है,  पर भाई ना भूले अपने फर्ज को,  वह दिल से पहले जैसी ही है।।  कोई भोर नहीं कोई सांझ नहीं, जब जिक्र पीहर का  जेहन में नहीं आया है।  फिर से आई है यह राखी,  फिर मिलने का मौसम आया है।।  दौर ए मुलाकात होगी तो,  दौर ए गुफ्तगू को भी मिलेगा अंज़ाम। तरोताजा हो जाएंगे नाते, जुदाई को फिर मिल जाएगा विराम।।  खिजा नहीं फिजा का मौसम, अब जर्रे जर्रे में छाया है।  कितना मधुर कितना सुंदर होता भाई का साया है।।  फिर से आई है यह राखी,  फिर मिलने का मौसम आया है।।  कैसे बचपन में रूठते मनाते थे, करते थे कैसे बात बात पर इसरार।  सब भूल, क्यों बन जाते हैं औपचारिक,  प्रेम ही हर रिश्ते का आधार।।  कच्चे धागे के पक्के बंधन की रिवायत  जाने कब से है जारी।  प्रेम डोर ना टूटे कभी भी,  समझने की आ गई है बारी।।  दौर संग बदल जाते हैं नाते, बदलते दौर ने बहुत कु

between

people may be unkind,u just be kind,they may cheat u,but be honest they may be selfish and self centrd,but u do gud for every one it is all between god and u,not u and them

Thought on life

जाने क्यों thought by sneh premchand

Thought on mother

माँ ममता का ऐसा अनंत सागर है,जो कभी नही सूखता,औऱ दूसरी बात इस सागर का जल खारा नही,अति मीठा है।सबने अनुभव कर रखा है ।।

कहां

मुझ को कहाँ ढूंढे है बंदे मैं तो तेरे पास में। न मन्दिर में,न मस्ज़िद में न काबा, न कैलाश में। कितना सच कह गए कबीरा हैं ईश्वर तो सब सांसो की सांस में। न तो किसी क्रिया कर्म में, न योग ,बैराग में, दया धर्म का मूल है ईश्वर दयालु हिया में ।।

गुरेज

माँ बाप संतान को जीवन में सर्वाधिक प्राथमिकता देते हैं,बच्चों के सपने पूरे करना ही अपने जीवन का एक मात्र लक्ष्य बना लेते हैं,वही बच्चे समय आने पर उन्हें उपेक्षा और अपमान का रिटर्न गिफ्ट देते हुए ज़रा भी गुरेज नही करते।क्यों?

Poem of emotions by sneh premchand

बेचैनी और सुकून एक दिन बेचैनी ने कहा सुकून से हो शांत से गहरे सागर तुम, थाह तुम्हारी किसी ने न पाई। मैं नदिया के भँवर के जैसी चंचल कोई शांत,सीधी, उलझी सी राह न दी मुझे कभी दिखाई। कहा सुकून ने बेचैनी से, होता है जहाँ मोह,काम,क्रोध और भौतिक सुखों को पाने की तीव्र लालसाएँ। तुम दौड़ी सी आ जाती हो वहाँ पर, ठहराव नही दिखाई देती तुम्हे राहें।। नही ज़रूरी मैं रहूं महलों में, मुझे तो फुटपाथ भी आ जाते हैं रास। पर तुम तो कहीं भी नही टिक पाती, पूरे ब्रह्मांड में तुम्हारा नही है वास।। जिस दिन तुम्हे जीवन की सही सोच समझ मे आएगी। विलय हो जाओगी तुम उस दिन मुझमे, बेचैनी सुकून बन जाएगी।।

सजल नयन by sneh premchand

सजल न हों ये नयन कभी, जिन्होंने सदा हंसना सिखाया है। आप को सिकन्दर हैं मुकद्दर के, आपका व्यक्तित्व तो सबको भाया है।। अगणित दुआएं हैं संग आपके, आपकी सलामती का तराना सबने मिल कर गाया है।।             स्नेह प्रेमचंद

Poem on changing senerio of life by sneh premchand

सच में दौर बदल जाते हैं आज के शहंशाह,कल फकीर बन जाते हैं गुजरे लम्हे,बहते दरिया से,कब लौट कर आते हैं।। आज बदल जाता कल में, कुछ मिलते हैं,कुछ बिछड़ जाते हैं।। वक़्त के साथ साथ,बिखराव सिमट जाते हैं। रूठना,ज़िद्द करना,समझौतों से नयन मिलाते हैं।। सच में दौर बदल जाते हैं।। मां बाबुल के आंगन में, कली पुष्प और ही खिल जाते हैं। वही आंगन है,वही रसोई, बस हकदार बदल जाते हैं।। सच में दौर बदल जाते हैं।। बुआ की अलमारियों में भतीजियों के कपड़े सज जाते हैं। जहां लड़ते,झगड़ते,रूठते मनाते थे वहां दर्द की बात पर भी मुस्कुराते हैं।। अक्सर मन की रह जाती है मन में, कुछ भी तो कह नहीं पाते हैं।। दौर बदल जाते हैं,सच में दौर बदल जाते हैं।

Thought of desire by sneh premchand

नही चाहिए मुझे सोनाचाँदी, ना ही है कोई अपने हिस्से की अभिलाषा, रखना ध्यान तुम माँ बाप का भाई, है हर बहन की यही भाई से आशा, कुछ लेने नही आती हैं पीहर बहने, वो बस बचपन के कुछ पल चुराने आती है, देखना चाहती हैं सुकून और शांति  माँ बाप के मुखमंडल पर, वो तो घर को रोशन कर जाती हैं,,,,,,,,,हर बहिन की अभिलाषा

Thought on humanity by sneh premchand

कर्तव्य पथ पर अकेले ही जो,  चल निकले हैं आप, जाने कितने ही अगणित दिलों की मिलेंगे दुआएं।।  सोनू सूद जी, चमक रहे हो इस जगत के नभ में आप आफताब से, बना रहे हो सरल,कठिन राहें।।  सब संभव हो सकता है,  गर दिल से हम वो करना चाहें। सोने सा दिल है सोनू जी, आपका, जरूरतमंदों के लिए खोल दी राहें।। घने बरगद से पेड़ हो आप, करुणा की फ़ैला दी शाखाएं।। व्यक्ति नहीं,बन गए हो एक विचार आप, कम है जितना भी आप को हम सराहें।। काश हर एक सबल हाथ थाम लेे  एक निर्बल का, कितनी ही खुशियां हम फिज़ा में फैलाएं।।             स्नेह प्रेम चंद

Thought of retirement by sneh premchand

हौले हौले, पल,पहर,दिन,महीने साल बीत कर, एक दिन ये आ ही जाता है। कार्यक्षेत्र में कार्यकाल हो जाता है पूरा, समय अपना डंका बखूबी बजाता है।। हौले हौले अनेक अनुभव अपनी आगोश में समेटे, बरस 60 का इंसा हो जाता है, हो सेवा निवर्त कार्यक्षेत्र से, कदम अगली डगर पर वो फिर बढ़ाता है।। पल,पहर,दिन,महीने-------------आ ही जाता है।। ज़िन्दगी की आपाधापी में  कई बार कोई शौक धरा रह जाता है, जीवनपथ हो जाता है अग्निपथ,कर्तव्य पथ, ज़िम्मेदारियों में खुद को फंसा हुआ इंसा पाता है।। पर अब आयी है वो बेला, जब साथी हमारा खुशी से कार्यमुक्त हो कर अपने घर को जाता है, शेष बचे जीवन में, उत्तरदायित्व बेधड़क सहज भाव से निभाता है। पल,पहर,दिन,महीने,साल-------आ ही जाता है।। ज़िन्दगी का स्वर्णकाल माना हम कार्यक्षेत्र में बिता देते हैं, पर शेष बचा जीवन होता है हीरक काल,यह क्यों समझ नही लेते हैं।। सेवानिवर्त होने का तातपर्य कभी नही होता, क्रियाकलापों पर पूर्णविराम, किसी अभिनव पहल, या दबे शौक को बाहर आने का मिल सकता है काम।। यादों के झरोखों से जब झांकोगे,तो जाने कितने अनुभव अहसासों को पा जाओगे, कितनो को ही न जाने मिली ही न होगी अभि

Thought on love

प्रेम,सहजता,भरोसा और विश्वास यही बनाती हैं जीवन को ख़ास इन सब से ओत प्रोत हो गर जीवनसाथी हर दिन उत्सव है बिन प्रयास किसी ख़ास दिन का मोहताज नही होता जश्न फिर पल पल जश्न का होता है आगाज़ माँ बाप और जीवनसाथी सजता है इनसे जीवन का साज रहे सदा सजा ये साज प्रीतम बस आती है दिल से यही आवाज़

Thought of father by sneh premchand

पिता पुत्र का कैसे हो सकता है कोई भी हिसाब   ????

Thought on love

प्रेम,सहजता,भरोसा और विश्वास यही बनाती हैं जीवन को ख़ास इन सब से ओत प्रोत हो गर जीवनसाथी हर दिन उत्सव है बिन प्रयास किसी ख़ास दिन का मोहताज नही होता जश्न फिर पल पल जश्न का होता है आगाज़ माँ बाप और जीवनसाथी सजता है इनसे जीवन का साज रहे सदा सजा ये साज प्रीतम बस आती है दिल से यही आवाज़

Thought on mother by sneh premchand

आधी जागी, आधी सोई थकी दोपहरी जैसी माँ। कुछ न कुछ हर पल वो करती सब कुछ करने जैसी माँ। ममता के मटके को  ममता के मनको से हर पल भरती जैसी माँ। चिमटा,बर्तन,झाड़ू,लत्ते धोती, कभी नही थी थकती माँ।

Thought on time by sneh premchand दौर बदल जाते हैं

दौर बदल जाते हैं,  सच में दौर बदल जाते हैं।  जिस घर में हम बड़े हक से, जीवन का अहम सा हिस्सा बिताते हैं।।  वहां फिर एक रात बिताने से भी  हम इतना क्यों कतराते हैं।। बुआ की जगह भतीजी के कपड़े,  उन्हीं अलमारियों में सज जाते हैं।। मां बाबा का प्यारा कमरा, भाई भाभी अपनाते हैं।। मेज़ वही है खाने का, बस खाने वाले किरदार बदल जाते हैं।। वही आंगन है वही रसोई,  रहने वाले हकदार बदल जाते हैं।। पहले मैं,पहले मैं,करके लड़ते थे  जो हम बड़े  हक से, पहले आप,पहले आप, करके औपचारिकता सी निभाते हैं। होती नहीं थी जब कोई ख्वाहिश पूरी, रूठ जल्द से मुंह फुला लेते थे। अपनी मर्ज़ी से ही एक दूजे को, चीजें देते थे। अब तो रूठना ही छोड़ दिया, जबसे मनाने वाले चले गए हैं, सच में सोच के, आयाम ही बदल जाते हैं।। लम्हा लम्हा ज़िद को समझौते में बदलता पाते हैं। सच में ही दौर बदल जाते हैं।। अधिकार और ज़िम्मेदारी, ये भी दोनों ही बदल जाते हैं। कहीं कुछ मिलता है,  तो कहीं कुछ छोड़े जाते हैं। ज़िन्दगी का परिचय हुआ था,  जहां नए नए एहसासों से, वहीं खुद को बेगाना सा पाते हैं। सच में दौर बदल जाते हैं। हर संज्ञा,सर्वनाम,वि

Thought on Life

Thought of heart of

Poem on mother by sneh premchand

शोक नही,संताप नहीं माँ, हम प्रेम से शीश झुकाएंगे। हमने पाया ऐसी माँ को, बड़े गर्व से सबको बताएंगे। युग आएंगे,युग जाएंगे, होते हैं जो ऐसे इंसा, उनको लोग भुला नही पाएंगे। व्यक्ति नहीं,बन जाते हैं विचार वे, उदहारण उनके हम देते जाएंगे। वह सागर,हम बूंद सही, अपने वजूद को तो गीला कर जाएंगे।। कतरा कतरा बनता है सागर, ज़र्रा ज़र्रा बनती है कायनात। मां से बढ़ कर ईश्वर ने नहीं दी, कोई भी इंसा को सौगात। ऐसी सोच का दरिया, घर घर में अब हम बहाएंगे। शोक नहीं,संताप नहीं हम बड़े प्रेम से शीश झुकाएंगे।। हमने पाया ऐसी मां को, बड़े गर्व से सबको बताएंगे।। कर्म के तबले पर, जिजीविषा की थाप है मां। मेहनत की हांडी में,  सफलता का साग है मां। सहजता के तवे पर, सुकून की रोटी है मां। वात्सल्य के सितार पर, मधुर सी धुन है मां। स्नेह के गुल्लक में, संतोष के सिक्के है मां। अनुराग की आंखों पर, सौहार्द का चश्मा है मां। कर्मठता के कानों में, विनम्रता की बाली है मां। घनिष्ठता की थाली में, अपनत्व की कटोरी है मां। सामंजस्य के फ्रीजर में उल्लास की बर्फ है मां। कर्म की सड़क पर, सफलता का पुल है मां। एहसासों के समन्दर में, सुरक्षा

Poem on mother by sneh premchand

माँ एक ऐसी किताब है जिसका हर पन्ना आसानी से समझ आ जाता है। माँ ऐसी कविता है, जो सब गा सकते हैं। माँ ऐसी कहानी है, जो रोचक ,ममतापूर्ण सम्पूर्ण और सारगर्भित है।। माँ एक ऐसा पाठ है, जो ज़िन्दगी की  पाठशाला में सबसे पहले पढते हैं, और ताउम्र चलता है। माँ ऐसा साहित्य है, जिसके आदित्य की रोशनी से सारा जग नहाया है। जिसे पूरा संसार पढ़ता है जो हर युग,हर काल मे प्रासंगिक है। यह साहित्य समयातीत है। हर युग हर काल हर स्थान पर प्रासंगिक है।। जैसे सागर की कोई सरहद सीमा नहीं, उसकी गहराई नापने का कोई पैमाना नहीं,ऐसी ही तो मां है।। मां रामायण की वो चौपाई है जिसे जितना पढ़ो,अर्थ और गहरा ही जाता है।। मां ममता का वो प्रतिबिंब है  जो मात्र स्नेह का अक्स ही दिखात   है। ।

Thought on life by sneh premchand प्रतिबिंब

आईने में हमारा शारीरिक प्रतिबिम्ब नज़र आता है, मन का प्रतिबिंब तो बस रूह को ही भाता है।। चित्रकार को विधाता शायद फुर्सत में ही बनाता है, कुदरत की सृष्टि को उकेरने की कोशिश वो अक्सर करता हुआ नजर आता है।।

Poem on mothers love by sneh premchand दे साथ लेखनी

दे साथ लेखनी,कुछ लिखेंगे ऐसा जो करेगा जननी को श्रद्धांजलि का काम। एक बिना ही जग लगता है सूना माँ है ईश्वर का ही दूसरा नाम।। वो कितनी अच्छी थी, वो कितनी प्यारी थी, वो हंसती थी वो हंसाती थी कभी शिकन  अपने चेहरे पर भूल से भी न लाती थी। बहुत परेशान होती थी जब तब बस माँ चुप हो जाती थी। न गिला,न शिकवा,न शिकायत कोई ऐसी माँ को शत शत हो परनाम। दे साथ लेखनी,कुछ लिखेंगे ऐसा करेगा जो जननी को श्रद्धांजलि का काम। भोर देखी ,न दिन देखा न रात देखी,न देखी शाम। घड़ी की सुइयों जैसी चलती रही सतत वो फिर एक दिन ज़िन्दगी को लग गया विराम। वो आज भी हर अहसास में जिंदा है बाद महसूस करने की नज़र चाहिए। है जीवन माँ का एक प्रेरणा बस प्रेरित हिने की फितरत चाहिए।। रोम रोम माँ ऋणि है तेरा ज़र्रा ज़र्रा करता है तुझे सलाम।।

Thought on different aspects of life by sneh premchand

दुनिया भर में मशहूर हुए भी,  तो क्या हुए? अगर अपनों में ही अजनबी रह गए। बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल की भी,  तो क्या की? गर अपनों की ही  खामोशी ना पढ़ पाए। बहुत बड़े डिजाइनर बने भी,  तो क्या बने? गर जिंदगी के लक्ष्य ही  डिजाइन न कर पाए। बड़े बड़े श्रृंगार कला केंद्र  खोले भी तो क्या खोले, गर मन के सौंदर्य को ही  विकसित न कर पाए।। बहुत सारी भाषाएं सीखी भी  तो क्या सीखी, गर दो मधुर बोल ही न बोल पाए।। छप्पन भोग खाए भी तो क्या, गर मां के हाथ की रोटी ही  मयस्सर न हुई।। ज्ञान के भंडार बने भी तो क्या, गर लोगों के दिलों में  करुणा की धारा ही  नहीं बहा पाए।। बहुत बड़े बड़े कला स्नातक बने, भी तो क्या बने? गर संगीत,साहित्य,कला की त्रिवेणी, हृदय सागर में न बहा पाए।। बड़े बड़े कथावाचक बने भी  तो क्या बने? गर मन की कहानी ही न समझ पाए।। बहुत कुछ खरीद लिया भी,  तो क्या खरीदा? गर लोगों के दर्द ही  उधार ना ले पाए। बड़े बड़े सी ए बने भी , तो क्या बने? गर ज़िन्दगी के पाप पुण्यों के डेबिट क्रेडिट इस धरा  पर ही न मिला पाए।। बड़े बड़े पायलेट बने भी, तो क्या बने? गर ज़मीर पर से  वक़्त की धूल ही  न उड़ा पाए।।

Thought on love by sneh premchand

Poem on mother by sneh premchand

माँ तुझे सलाम क्या भूलें,क्या याद करें माँ तेरे काम। जाने कैसे बनाया होगा तुझ को न देखा होगा दिन,न देखी होगी शाम। तुझे बना कर खुद पर बहुत इतराया होगा भगवान। फिर कोई प्राणी नही बना पाया तुझ जैसा,अपनी ही रचना पर हो  गया होगा हैरान। माँ तुझे सलाम जननी,जन्मभूमि स्वर्ग से भी बेहतर है सुना था,पढ़ा था पर तुझ से जब मुलाकात हुई कथन को सच का मिल गया अंजाम। युग आएंगे,युग जाएंगे आने वाली हर पीढ़ी को किस्से तेरे सुनाएंगे। तू ऊपर से सुनना माँ हम बार बार दोहराएंगे। माँ तुझे सलाम। हर शब्द पड़ जाता है छोटा जब करने लगती हूँ तेरा बखान। कर जोड़ हम सब देते हैं माँ श्रद्धांजलि तुझको शत शत करते है परनाम। माँ तुझे सलाम। माँ देख ये तीज फिर से आई है। नश्वर तन तेरा ले गयी ये पिछले बरस पर यादों के झरोखों को कभी नही लगा सकेगी विराम।। शोक नही,संताप नही हम गर्व से माँ तुझ को  सदा यूँ ही करते रहेंगे याद। सोचना भी सम्भव नही था कभी कैसा लगेगा माँ के जाने के बाद।। हर अहसास में माँ तू ज़िंदा है। सोच में तू,विचार में तू,आचार में तू व्यवहार में तू फिर कैसे हम तुम जुदा हुए। ज़र्रा ज़र्रा कर रहा माँ तुझ को सलाम।

Thought on mother by sneh premchand

नाराज होकर भी नाराज नहीं हो पाती है मां।  शक्ल देख कर चाय में बिस्किट सी पिघल जाती है मां।।

Thought on mother by sneh premchand

कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि किस मूढ़ में रहा होगा भगवान जब उसने किया होगा मां का निर्माण।।

जन्मदिन

देशभगत देश से प्रेम करता है उसकी प्रेम की हद तो सब सीमाएं कर जाती है पार। चन्द्रशेखर से देशभगत,देश के लिए जान देने को रहते हैं तैयार।। आज उनके जन्मदिवस पर श्रधांजलि देते हैं हम उन्हें बारम्बार।।

Thought on mother by sneh premchand लम्हो की एफ डी

गर लम्हों की भी कोई एफ डी होती, तो ज़िन्दगी के झोले से मैं हौले से मैं उन लम्हों का ही करती इंतखाब। थी जिन लम्हों में मां संग मेरे, पन्ना पन्ना यूं ही बढ़ती रही किताब।। सबसे अधिक रिटर्न है  बस इसी रिश्ते में, चाहे पूरी उम्र में सारे नातों का  लगा लो हिसाब।। गर लम्हों की भी होती कोई एफ डी, तो ज़िन्दगी के झोले से मैं बचपन के उन लम्हों को चुनती, जब बचपन में नहीं थी कोई चित चिंता, सहजता जीवन से दामन नहीं चुराती थी। होती थी गर कोई भी परेशानी, मां झट से दौड़ी आती थी।। लागत से अधिक प्राप्ति है इस नाते में, हर सम्भव प्रयास से, मां फरमाइश पूरी कर जाती थी।। उन लम्हों की भी करा लेती मैं एफ डी, जब भाई बहनों संग बड़े मज़े से रहती थी। जो भी आता था मेरे दिल में, मैं ततक्षण ही कह देती थी।। रूठती तो फट से मना लेते थे  एक दूजे को, नहीं दिल पर बात कोई भी लेती थी।। उन लम्हों की भी करा लेती एफ डी, जब मां संग, जाना होता था बाज़ार। वो मनचाहा सब दिला देती थी, है उसके प्यार का कर्ज उधार।। उन लम्हों की भी करा लेती एफ डी मैं, जब बाबुल का सिर पर प्यारा साया था। लगती नहीं तपिश थी तब कोई, सुकून ए जेहन उ

Poem on mother by sneh premchand

There is no other,like a mother Whether sister or brother. For the questions of life, She is the most suitable answer.. For harsh moments of life, She is the only best smoother. To fulfill our unlimited desires, She becomes Helicopter. She is not only our mother, She is our first teacher. When things are scattered in life, Mother is the best manager. She only cries,when she is in anger. She never curses,always there is blessings  shower. She  is never slow,always she is faster For our betterment,her wits are always sharper. For the destiny of child,she is the best writer. When we forget our ways,she is the best reminder. In our life,she is remarkable highlighter. It is very true,no doubt, There is no other,like a mother, Whether sister or brother. She reads our face,our eyes and our mind Really there is no one like her,kind. She wants only our sweet words and little care. She is only one,every thing she can share.        Sneh premchand .

दौर

दौर है ये कोई,गुजर ही जाएगा

उठ लेखनी thought by sneh premchand

उठ लेखनी आज कुछ नए काम को देंगे अंजाम। जननी के बारे में कुछ लिख कर करेंगे भला काम।। वो रुकती नही,वो थकती नही,चलते रहना उसका काम। न गिला,न शिकवा,न शिकायत कोई,न देखती भोर,न देखती शाम।। किस माटी से ऊपरवाले ने कर दिया होगा माँ का निर्माण। बहुत ही अच्छे मूढ़ में होगा शायद उस दिन भी भगवान। हम भला करें,हम बुरा करें,कभी नही देती इस बात पर ध्यान। बस हमारा बुरा कभी न होने पाए,इस कोशिश में लगा देती है दिलो जान। एक अक्षर के छोटे से शब्द में सिमटा  हुआ है पूरा जहान। न कोई था,न कोई है,माँ से बढ़ कर बड़ा महान।। सच मे एक माँ ही तो होती है गुणों की खान। माँ से घर है,माँ से जहाँ है,माँ से ही घर बनता है मकान।। उठ लेखनी आज कुछ ऐसे काम को देंगे अंजाम। जननी स्वर्ग से भी बढ़ कर है,हो सबको इस सत्य की पहचान।। जननी,जन्मभूमि हो दोनों का ही एहतराम। इस भाव को जीवन में लगे न कभी विराम।।।         स्नेह प्रेम चंद

कान्हा by sneh premchand

शब्द हैं कान्हा,तो लेखनी हूँ मैं नयन हैं कान्हा,तो नूर हूँ मैं।। अधर हैं कान्हा,तो मुरली हूँ मैं मांग है कान्हा,तो सिंदूर हूँ मैं। मीत हैं कान्हा,तो प्रीत हूं मैं संगीत हैं कान्हा,तो गीत हूँ मैं। माखन है कान्हा,तो मधानी हुन मैं राजा है कान्हा,तो रानी हूँ मैं.। ग्वाला है कान्हा,तो गैया हूँ मैं ममता है कान्हा,तो मैया हूँ मैं। मन्ज़िल है कान्हा,तो राह हूँ मैं कशिश है कान्हा,तो चाह हूँ मैं। लक्ष्य है कान्हा ,तो प्रयास हूँ मैं अपने कान्हा के लिए,सच मे खास हूँ मैं।।        स्नेह प्रेमचंद

एक कमरा उसका भी हो thought by sneh premchand

एक कमरा उसका भी हो, है वो भी इसी अंगना की कली प्यारी। यहीं फला फूला था बचपन उसका, अब कैसे मान लिया उसे न्यारी??? नए रिश्तों से जुड़कर उसके,  जीवन के  अध्याय बदल जाते हैं। बहुत कुछ छिपा दिल के भीतर, लब उस के फिर भी मुस्कुराते  है।। हर गम हर खुशी में होती है,  पूरी उसकी भी तो भागेदारी। गुजरे लम्हे तो कैसे,  मान लिया उसे न्यारी।। अम्मा बाबुल के सपनो ने,  जब ली प्रेमभरी अँगड़ाई थी। तब ही तो लाडो बिटिया,  इस दुनिया मे आयी थी। एक ही चमन के कली पुष्प तो, होते हैं सगे बहन भाई। फिर सब कुछ बेटों को सौंप  मात पिता ने, मानो अपनी  ज़िम्मेदारी निभाई।। मिले न गर ससुराल भला उसे, हो जाएगी न वो दुखियारी। एक कमरा तो उसका भी बनता है, है मात पिता की वो हितकारी।। कभी न भूले कोई कभी भी, थी वो भी इसी अंगना की कली प्यारी।। हर आहट पर मात पिता की, रानी बिटिया दौड़ कर आती है। कभी कुछ नही कहती मन का लाडो, बस चैन मात पिता के आंचल में पाती है।। एक दिन चुपचाप विदा होकर, वो अंगना किसी और का ही सजाती है। माना हो जाती है गृहस्वामिनी और पूरे घर पर उसका ही आधिपत्य होता है, पर पीहर से क्यों उखड़े जड़  उसकी पूरी ही, ये मलाल हर ब

धड़कन

ज़िक्र ए जेहन thought by sneh premchand

ससुराल चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, मायका कभी भी भुलाया नहीं जाता। शायद ही कोई भोर सांझ होगी ऐसी, जब जिक्र जेहन में उसका नहीं आता।।        स्नेह प्रेमचंद