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Showing posts from March, 2022

समय

सुना है

ना नदिया ने

सही वे भी थे

जब भी करते हैं मांसाहार

किताब

आसान है कहना

ना कुछ संग लाए थे

एक 31 मार्च ऐसा भी हो

कम हैं

ना छंद ना शैली ना रस ना अलंकार

ना रस ना छंद ना शैली ना अलंकार तुझ पर लिखने के लिए,नहीं लेखनी को किसी की भी दरकार। सब खुद ही आ जाते हैं बिन बुलाए, जैसे शादी में रिश्तेदार।।

मुस्कान(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

आज भी याद आती है तेरी वो पावन,मधुर दंतुरित सी मुस्कान। धूप हो या छांव हो, सदा बनाया इसे लबों का परिधान।। 11 स्वर और 33 व्यंजन कम हैं जो तेरी प्रतिभा का कर सकूं बखान।। हानि धरा की,लाभ गगन का, नहीं लेते जन्म बार बार तुझ से महान।।

ओ डिप्लोमेट!!

योग प्राथमिक है जीवन में

योग प्राथमिक है जीवन में, भली भांति था तुझे इसका ज्ञान। अपनाया दिनचर्या में अपनी, राहें जीवन की,की आसान।।             स्नेह प्रेमचंद

रुझान कला की ओर

कितना अधिक रुझान था तेरा सच में ओ मां जाई कला संगीत नृत्य की ओर। सौ बात की एक बात है, तूं जीवन की सबसे सुंदर भोर।।

प्रेम ना जाने मजहब जाति

प्रेम ना जाने मजहब जाति  प्रेम ना जाने कोई सरहद की दीवार। प्रेम से सच में ही, सुंदर हो जाता है पूरा संसार।।

तेरा संभव ही नहीं बखान(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

वही दीवाली,वही है होली(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

अपने हों जब संग अपनों के, वही दीवाली और वही है होली। *प्रेम से बड़ा कोई रंगरेज नहीं* प्रेम रंग से ही सजता है  हर इंद्रधनुष और हर रंगोली।। प्रीत की  ऐसी लगी लगन है, मैं तो अपनों की होली,होली,होली।।

हर मंजर

कशिश वाला साया

ना बुलाने में दम है कोई

दिनकर की

अधिकार या जिम्मेदारी

तुझ सा कोहिनूर((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

संगीत से सुंदर कुछ भी नहीं

जब भाव प्रबल हों(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

सार्थक

लेखनी

चुन चुन कर

लफ्ज़ नहीं लहजे

हर पंख को

विविधता में एकता

अभाव का प्रभाव

कहीं नहीं जाते मां बाप

चलो मन

जीवन भर का(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

उठो पार्थ गांडीव उठाओ(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*उठो पार्थ गांडीव उठाओ* अधर्म पर धर्म को विजय दिलाओ। अति महीन हैं ये मोह मोह के धागे, इन पर विवेक की कैंची चलाओ।। मोह ग्रस्त इस चित की चेतना को, ज्ञान सरिता में डुबकी लगवाओ।। जब जब होती है हानि धर्म की, तब तब जन्म मैं लेता हूं। धर्म की स्थापना के लिए, साधुओं की रक्षा के लिए, नए अवतार में पापी को दंडित कर देता हूं।। तुम भी मत हिचको मेरे प्रिय शिष्य! चलो ,सत्यपथ पर मत डगमगाओ। अन्याय का फन कुचलो, और न्याय को विजय दिलाओ।। *उठो पार्थ !!गांडीव उठाओ* ये मोह मोह के हो धागे हैं, इनकी उलझन से बाहर आओ।। याद करो अभिमन्यु वध को, याद करो उस चकव्यूह को, जहां अकेले निहत्थे को मिल कर सबने ने मारा था। अंतिम श्वास तक लड़ता रहा वो, पर हिम्मत नहीं हारा था।। फिर तुम क्यों लड़ने से पहले ही विचलित से हुए जाते हो??? सब झूठे हैं ये नाते रिश्ते, क्यों समझ नहीं पाते हो????? सत्य के लिए लडो पार्थ, क्यों मोहग्रस्त हुए जाते हो??? *उठो पार्थ गांडीव उठाओ* अधर्म पर धर्म को विजय दिलाओ।। याद करो वो धूतक्रीडा का छल याद करो वो पांचाली का रूदन याद करो वो दुर्योधन का कथन सोया है जो ज़मीर तुम्हारा, उसे चेतना में ले आओ।। *उठो

लफ्ज़ नहीं लहजे

लफ्ज़ नहीं लहजे

बूंद बूंद बनता है सागर 29th wedding annversary(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

बूंद बूंद बनता है सागर, लम्हा लम्हा बनती है जिंदगानी। जिंदगी और कुछ भी नहीं, सच है तेरी मेरी कहानी।। कैसे बीते बरस 29 हो ही नहीं पाया अहसास। कुछ नए मिले,कुछ पुराने बिछड़े कुछ आम रहे,कुछ बन गए अति खास।। समय के गर्भ से घटनाएं लेती रही जन्म। हम भी करते रहे हमारे जीवन के कर्तव्य कर्म।। पहले अपने बागबानों के कली और पुष्प थे, फिर हम बने बागबान और कली पुष्प बने फिर बच्चे हमारे। यूं ही तो इतिहास दोहराता है खुद को, पहले बुआ फिर भतीजी हो जाती है विदा,और चली जाती है साजन के द्वारे।। साजन सजनी रहते हैं संग एक दूजे के, सुख दुख दोनो ही साथ निभाते है। सच रिश्तों के भी रूप बदल जाते हैं।। समय संग ये नाता और भी गहराता है जैसे हिना का रंग  धानी से श्यामल हो जाता है।। आप के जीवन की बगिया यूं हीं महकती रहे। आपके घर आंगन में चिरैया यूं हीं  चहकती रहें।। मतभेद बेशक हो जाएं,पर मनभेद सदा ही दूर रहें।। खुशियां देती रहें दस्तक जीवन में, आजमाइश सदा ही दूर रहें।। मुबारक मुबारक शादी की सालगिरह मुबारक,बहन आपकी दिल से कहे।।             स्नेह प्रे

कोई जिद नहीं कोई अहंकार नहीं

परमानंद का अनहद नाद है प्रेम(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))