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Poem on human heart . जी चाहता है by snehprem chanf

जी चाहता है पंछी बन,  उन्मुक्त गगन में उड़ जाऊं। जी चाहता है खूब हो बारिश, और मैं भीग भीग सा जाऊं। जी चाहता है फिर से बन कर छोटाबच्चा, मैं माँ के आंचल में छिप जाऊं। जी चाहता है जाड़े की धूप में बैठ नन्हे नन्हे स्वेटर बनाऊं। जी चाहता है सारी चित चिंता  की चिता जलाऊं। जी चाहता है गंगा के घाट पर  घंटों उसको निहारे जाऊं। जी चाहता है भुनते भुट्टों को  अपने मुंह का स्वाद बनाऊं। जी चाहता है माँ करे इंतज़ार,  मैं बैग लगा कर दौड़ी जाऊं। जी ही तो है,कुछ भी चाह सकता है। कई बार दिमाग पर दिल भारी पड़ता है दोस्तों।            स्नेह प्रेमचंद