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हर शब्द पड़ जाएगा छोटा (विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

लिखने को तो कितना ही लिख लो, मां के बारे में,  हर शब्द पड़ जाएगा छोटा,  हर भाव हो जाएगा नम।। कितना भी कर लो बखान मां का, निश्चित ही लगेगा वो कम।। खुद हो कर क्वार्नटीन एक कमरे में, अब तो इस अहसास की अलख जलाओ। मां को भी कितना अखरता होगा एकाकीपन, समय रहते ही चेत जाओ।। मात्र *कैसी हो मां* कह कर अपनी जिम्मेदारियों से नयन मत चुराओ।। फिर जिद्द करो पहले सी उससे, मां तेरे हाथ की रोटी खानी है। वो झट से उठ जाएगी देखना, मां सच में औलाद की दीवानी है।। हमें हमारे गुण और दोष दोनों  संग   जो अपनाती है। कोई और नहीं वो प्यारे बंधु, सिर्फ और सिर्फ मां कहलाती है।। एक अर्ज और गुजारिश है उनसे मेरी, जिनकी माएं वृद्धाश्रम में रहती हैं। इस मदर्स डे पर जा कर ले आओ उनको, रहती है उदास वहां पर वो, बेशक लबों से कुछ नहीं कहती है।। वो पल भर भी ओझल नहीं  होने देती हमे   अपने आप से, हम कैसे वृद्ध आश्रम में उसे छोड़ चैन से रह पाते हैं??? मुझे तो जीवन के ये दोहरे आयाम समझ नहीं आते हैं।। माना मसरूफियत बहुत हैं जिंदगी में हमारी, पर अपनी प्राथमिकताओं की फेरहिस्त में हम मां को कहां बिठाते हैं। यह सब कुछ निर्भर कर