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बेशक वो करता नहीं इजहार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

बेशक वो करता नहीं इजहार पिता को भी मां सा ही होता है बच्चों से प्यार।। जब से जिंदगी का परिचय हो रहा होता है अनुभूतियों से,तब से पिता का अक्स नयनों में रहता है। हमे हमसे आगे बढ़ते देखना चाहता है वो,बेशक लबों से कुछ नहीं कहता है।। पिता बन कर समझ आता है पिता हमारे लिए हर तूफान कैसे हंसते हंसते सहता है। बहुत कुछ तो बताता भी नहीं, बस दरिया सा सतत पिता बहता है।। सागर सा गहरा होता है पिता, होता है बरगद की शीतल छाया। महफूज और पूर्ण सी होती है जिंदगी जब तक सिर पर रहता है पिता का साया।। मां पर तो चली हैं लाखों लेखनियां, पर पिता पर आकर अक्सर खामोश सी हो जाती हैं। जबकि मां भी पिता बिन शक्तिहीन सी है,ये बात क्यों सबको समझ नहीं आती है????? बच्चों के शौक की खातिर पिता अपनी जरूरतें भी हंसते हंसते कर देता है कुर्बान। औलाद का भी बनता है फर्ज, उसकी मेहनत और मशक्कत को ले पहचान।। पिता पुत्र हों मित्र से,खुल कर संवादों की बहे धारा पिता पुत्र का,पुत्र पिता का हर मोड़ पर बने सहारा खुद मझधार में हो कर भी साहिल का पता बताता है पिता, ये पिता बच्चों का नाता है कितना प्यारा।। सूरज सा गर्म बेशक होता है पिता, पर एक