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Showing posts from February, 2020

ज़िन्दगी और कुछ भी नही

दो पल के जीवन से एक उम्र चुरानी है। बिटिया को तो जाना ही है ये रीत पुरानी है।। है वो सबसे मधुर सरगम, जो सबको सुनानी है। ज़िन्दगी और कुछ भी नही माँ बेटी की कहानी है।। जीवन के अग्निपथ में वो भोर सुहानी है। ज़िन्दगी की धूप में वो सबसे शीतल पानी है। वो सबसे ठंडी छाया जीवन की वो प्यारी बिटिया रानी है।।           स्नेहप्रेमचंद

एक ही तो हैं thought by snehpremchand

बहुत समझाया

बहुत समझाया लेखनी को मैंने, कभी किसी और विषय पर भी सीखो चलना। क्यों माँ पर  ही अटक जाती है सुईं तुम्हारी घूम फिर कर आता है तुम्हे बस उसी पर मचलना।। क्या करूँ हौले से बोली लेखनी, भावों की पाइप से ही शब्दों का पानी मुझ तक आता है। और भावों में सिर्फ और सिर्फ माँ रहती है, तो शब्दों को भी उसी पर चलना भाता है।। यादों के उमड़ घुमड़ कर बादल जब जेहन में अजीब सी हलचल मचाते हैं। फिर वे बादल भावों की बन के बरखा,  शब्द सृजन का जल बरसाते हैं।। उन बादलों में भी अलग अलग,  जाने कितनी ही आकृतियां उभर कर आती हैं। हर आकृति में माँ दिखती है, जैसे कोई मीठी सी लोरी गुनगुनाती है।। समय सब घावों का मरहम इस बात को।झुठलाती है।। वो याद बहुत आती है,वो याद बहुत आती है।। लेखनी की बात सुन मैं निरुतर थी।।                स्नेहप्रेमचंद

जो लौट के घर नही आए

utimate mother in law. poem by snehpremchand

हँसते हँसते सौंप देती है सास बहू को अपने जीवन का अनमोल खज़ाना। वो ऐसी है,वो वैसी है, देखो अनर्गल सी बातें न बनाना।।            थोड़ा डाँट भी दे तो,ये हक है उसका, अहम की कर दीवार खड़ी, अपना मुँह बेबात न फुलाना।। उसकी खुशी की ही तो खुशी हो तुम,         हो उसके लिए सबसे अनमोल नजराना।। वो भी तुम्हारी ही तरह,  इस घर की दहलीज लांघ, चावल के लोटे को गिरा,बड़े चाव से आई थी। बस वक़्त बदला है,पात्र बदले हैं, पर किरदार का तो है वही पैमाना।। कभी कह भी दे गर कुछ तुमको        देखो बात का बतंगड़ न बनाना। सबसे अधिक शुभचिंतक है वो तुम्हारी बेशक जननी की तरह न आता हो उसे दर्शाना।।            स्नेहप्रेमचंद

लाज़मी

http://premvachan.blogspot.com/2020/02/blog-post_25.html

भाव poem by snehpremchand

नूर ए ज़िन्दगी

नूर ए ज़िन्दगी गर कहा जाए माँ को, तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी। रोशनी ए चिराग गर कहा जाए माँ को, तो ये सच्चे अहसासों की उम्दा अभिव्यक्ति होगी। अल्फ़ाज़ ए किताब गर कहा जाए माँ को, तो वो भी इतना ही सच होगा, जितना कि बच्चे में मासूमियत होना। गज़ल ए रूहानियत गर कहा जाए माँ को, वो तो सागर में नीर होने जैसा सच होगा। धड़कन ए दिल गर कहा जाए माँ को, ये शब्दों की ही नहीं, भावों की खूबसूरती होगी।। अश्क ए नयन गर कहा जाए माँ को, ये बात बड़ी सहज सुंदर सी होगी। समाधान ए समस्या कहा जाए माँ को, ये भी उतना ही सच होगा जितना भोर के बाद साँझ का आना।। महक ए कुसुम गर कहा जाए माँ को तो एकदम वो इतना सही होगा जैसे जुगुनू में चमक का होना, नज़्म ए मौसिक़ी कहा जाए गर माँ को, वो भी कोयल में मीठी कूक होने जैसा सही होगा।। जिजीविषा ए ज़िन्दगी गर कहा जाए माँ को ये तन में श्वाशों का होने सा सच होगा।। मरहम ए घाव कहा जाए माँ को वो भी उतना ही सच है जैसे आदित्य के बाद इंदु का आना।। परवाज़ ए पंख कहना भी माँ को उतना ही सही होगा, जितना भोर में भास्कर का उदित होना।। जश्न ए ज़िन्दगी कहना भी उतना ही सही है माँ को,जितना प्रकृति में हरियाली का

नाम अनेक

रवि रश्मियाँ

कोहेनूर

खैरियत कम

खैरियत कम हैसियत  अधिक पूछता है ज़माना। ये रीत है युगों पुरानी, माथा देख आता है, लोगों को टीका लगाना।।

सुकून ए दिल

बेफ़िक्री

माँ जाने से पहले

माँ जाने से पहले एक बार सिर्फ एक बार तेरे बिन जीने की कला तो सिखा जाती, तूँ तो जाते जाते सहजता भी ले गयी।।

आदित्य सी

हमारे जीवन के साहित्य में आदित्य सी चमकी माँ तूँ हटा तमस ला दिए उजियारे कैसे आते थे माँ तुझ्को दूजों के दर्द लेने उधारे।।

शिक्षा poem by snehpremchand

नूर ए दिल

नूर ए ज़िन्दगी गर कहा जाए माँ को तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी धड़कन ए दिल गर कहा जाए माँ को  ये शब्दों की नही,  भावोों  की खूबसूरती होगी।।

उदीप्त

उदीप्त सी हो जाती हैं भावनाएं, शब्द सृजन हेतु लगते हैं फड़फड़ाने। जब जेहन में माँ तूँ आ जाती है, मन लगता है दिल से गुनगुनाने।।

कतरा कतरा

कतरा कतरा बीत रहे पल जीवन के, यही ज़िन्दगी के सफर की है कहानी। माँ जब साथ थी इस सफर में, जिजीविषा रहती थी बन के पटरानी।।

कहीं नही

कहीं नहीं जाते मात पिता, होते हैं सदा हमारे पास। हमारी सोच में हैं,आभास में हैं, व्यवहार में हैं, शिक्षा,संस्कार में आज भी रचाते हैं रास।।

अथाह सागर

असीमित संभावनाओं के अथाह सागर से माँ तूने अनमोल से मोती खोज निकाले। सोच,कर्म,परिणाम की ऐसी बहाई त्रिवेणी कल्पना से भी परे है ये विचार, कैसे तूने हम सब थे पाले।।

उजियारे

हम सबके जीवन मे बनकर माँ तूने सूरज,हर लिए तमस, ला दिए उजियारे। वही मेरी माँ मिले मुझे हर जन्म में, माँगती हूँ यही दुआ मैं साँझ सकारे।।

तूँ थकी नहीं, तूँ डटी रही

जीवन के इस अग्निपथ को, तूने ही तो सहजपथ था बनाया। तूँ थकी नहीं, तूँ डटी रही, कर्म की कावड़ में भर शीतल जल, माँ तूने अतृप्त कंठों को तृप्त कराया।।           स्नेहप्रेमचन्द

न गिला,न शिकवा,न शिकायत कोई

न गिला,न शिकवा,न शिकायत कोई कर्म का अनहद नाद तूने सदा बजाया। विषम परिस्थितियों में भी हार न मानी अपनी हिम्मत से उन्हें बदल कर दिखाया। माँ जीवन की इस तपती धूप में, बड़ा ही शीतल था तेरा ठंडा साया।।

हमे माफ कर देना माँ

हमें माफ कर देना माँ, हमें क्रिया की सही प्रतिक्रिया नही करनी आई। सोच सोच होती हूँ हैरान, किस माटी से खुदा ने तूँ होगी बनाई??? चिंता नही माँ तूने कर चिंतन सही दिशा में कर्म की पींग बढ़ाई।।

अनुकरणीय कहानी

उपलब्ध सीमित संसाधनों में, माँ ने कब,क्या,कैसे,कितना किया, है हम सबके लिए ये अनुकरणीय कहानी। कौन सी ऐसी भोर साँझ है जब याद न आती हो,मुझे मेरे बच्चों की नानी।।

अभिवर्धन

अवमूल्यन नहीं संस्कारों को हो यथासभंव अभिवर्धन, माना कोई रोक नही सकता, होकर ही रहता है परिवर्तन।।

तुम जो

तुम जो जाने की बात करते हो दिल मेरा डूबा डूबा सा जाता है। जैसे पिंजरे में हो परिंदा कोई, उड़ना चाहे उड़ा क्या जाता है???

साँझ हुई वो जेहन में आई poem by snehpremchand

साँझ हुई वो जेहन में आई, यादों ने लाँघ दहलीज़ दिल की, दिल की ही चौखट खटखटाई। साँझ हुई वो जेहन में आई, जो पल गुजारे थे संग उसके, हैं आज भी वे मेरी अनमोल धरोहर, उनकी ही तो मैंने एफडी कराई।। साँझ हुई वो जेहन में आई, रूह का रूह से जुड़ा है नाता। चित्त सुकून उसके आँचल में पाता।। कभी गर्मी की कभी सर्दी की छुटियों का रहता था मन के किसी कोने में इंतज़ार। उसके बाद नही होता मन  वहाँ जाने को बेकरार।। बीते पल वो चली गई, यादें कहीं भीतर हैं कसमसाई। साँझ हुई वो जेहन में आई, एक इसके न होने से कम हो गयी, जैसे मेरे पीहर की रोशनाई।। संग ही चला गया उसके, वो ज़िद्द करना वो रूठना मनाना। सहजता,सुकून,जिजीविषा ने भी, कम कर दिया है घर के आँगन में आना।। न उठती है कसक अब सीने में, न झट से अब बैग होता है तैयार। जब भी उदास होता है मन, आ जाती है याद वो बारम्बार।। बेहतरीन पल थे वे जीवन के, जब ज़िन्दगी के सफर में था उसका साथ। आज भी जेहन में हलचल मचा देता है, उसका वो हौले से दबाना मेरा हाथ।। वो पट खोल अलमारी के मुझे, प्रेम से दिखाने उपहार। और कहीं नही मिल सकता, उसके जैसा अनमोल सा प्यार।। जब मन हुम हुम करता है, और हर मंज़र ल

योग महिमा भाग 1 by snehpremchand

योग प्राथमिक है जीवन में, श्वाशों की माला में सुमरें प्रभु का नाम। व्याधि विकार नष्ट हो जाएं सारे, योग आए अब जन जन के काम।। मन्ज़िल बिन कहाँ जाए मुसाफिर, बिन तेल कैसे जले बाती?? बिन नीर मीन का जीवन कैसा, बिन दिन कैसे आए राती??? बिन योग के जीवन भी, निर्जीव नीरस सा पड़ता है जान। आकर इसकी शरण मे इंसा को, योग शक्ति का होता है भान।। तन मन दोनों की शुद्धि, सर्वशक्तिमान होने का होता भान। योग प्राथमिक है जीवन में, श्वाशों की माला में सुमरें प्रभु का नाम।। सकारात्मक दृष्टि और वैश्विक सृजन, हैं,दोनों ही योग के अदभुत वरदान। योग बनाये हमें स्वावलम्बी आत्मनिर्भर, यही योग की सच्ची पहचान। व्याधि विकार नष्ट ही जाए सारे, योग आए अब जनजन के काम।। योग का अर्थ है जागरूकता,विवेकशीलता और दायित्यों का निर्वहन करना। आरोग्य है जन्मसिद्ध अधिकार हमारा, नही रोगों को हमे सहन करना।। रोगमुक्त हो जीवन गर तो, चिंतामुक्त हो हर भोर और शाम।। योग प्राथमिक है जीवन।में----- रोगों को समूल मिटाता है योग, जीवन मे आनन्द बढ़ाता है योग, आत्मा को पावन बनाता है योग, तमस में उजियारा लाता है योग, निराशा में आशा लाता है योग, अवसाद विषाद क

कई बार

जो लौट के घर नही आये. poem by snehpremchand

शिव सत्य

शिव सत्य, शिव सुंदर है शिव से ही ये संसार। खुद गरल पीकर नीलकण्ठ कहलाने वाले भोले बाबा जगत के तारनहार।।

एक ही है poem by snehpremchand

एक धरा है एक गगन है एक ही तो है ये संसार। एक ही वृक्ष के हैं हम विविध पत्ते,पुष्प और कलियाँ, एक ही ओम एक ओंकार।। खुद पीकर गरल बचाया सृष्टि को नीलकण्ठ भोले बाबा तारनहार।। यही तरबियत है आज के दिन की गरल पीना सीखें फैलाएं नहीं इसी भाव का तिलक करें संस्कार।।

शिव ही सत्य,शिव ही सुंदर

शिव ही सत्य,शिव ही सुंदर, शिव सृष्टि के पालनहार। एक धरा है,एक गगन है, एक ही सबका सृजन कार।। एक प्रकृति,एक सृष्टि, एक ओम है एक ओंकार। एक चन्द्र है एक रवि है, एक ही तो है ये पूरा संसार।। रूप में बिंदु,गुणों में सिंधु, परमपिता हमारे भोलेनाथ। ज्योतिस्वरूप शिव प्रेम का सागर, रहे सिर पर सदा हमारे हाथ।। असत्य अधर्म और पापाचार। नही होते भोले को स्वीकार।। शिव गरिमा, शिव महिमा,शिव ज्ञान का भंडार हैं। शिव संकल्प,शिव सिद्धि, शिव कृपा का विस्तार हैं।। शिव अनुभूति,शिव अभिव्यक्ति,शिव ही अहसास हैं। शिव अनादि, शिव अनन्त, शिव धरा,आकाश हैं।। शिव धीरज, शिव संयम, शिव तप और त्याग हैं। शिव संतोषी, शिव आक्रोशी, शिव ही अनुराग हैं।। शिव आत्मा,शिव परमात्मा,शिव साकार शिव निराकार है। शिव सूक्ष्म बिंदु,शिव ही ब्रह्मांड, शिव सतह, शिव ही आधार है।। शिव दिन, शिव रात, शिव साँझ, भोर है। शिव चेतना ,शिव स्पंदन, शिव शांति,  शिव मधुर सा शोर है।। शिव लय, शिव गति,शिव ही तो ताल है। शिव पल ,शिव लम्हे,शिव दिन महीने साल है।। शिव काल, शिव कला, शिव तीर्थ धाम है। शिव ध्वनि, शिव सरगम, शिव साधना का नाम है।। शिव तप, शिव त्याग, शिव राग,

महाशिवरात्रि है सबसे न्यारा composition by snehpremchand

शिवोपासना के पर्वों में, महाशिवरात्रि है सबसे न्यारा। शिव सौम्य हैं तो रुद्र भी हैं सच जाने अब ये जग सारा।। दोनों के ही अधिपति शिव, सृजन हो या हो संहार। विरोधी भावों का अदभुत सामंझस्य शिव में, नष्ट होते शिवपूजा से समस्त विकार।। शिव मस्तक पर चन्द्र है तो, कंठ में उनके सर्पों का हार। गृहस्थ होते हुए भी वीतरागी हैं वे, भूत, प्रेत,सर्प,नन्दी सब उनका परिवार।। शिवोपासना में है इतनी शक्ति, देती है ये भगति और मुक्ति, ध्यान किया जिसने शिव का सच्चे मन से, लागे पूरा जग फिर उसको प्यारा। शिव सौम्य हैं तो रुद्र भी हैं, सच जाने अब ये जग सारा।। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को, पर्व शिवरात्रि का मनाया जाता है। आलौकिक शक्तियों का धरा पर आना,  सबको तहे दिल से भाता है।। बेलपत्र और धतूरे हैं भोले को अति प्यारे। उनसे ही खुश हो जाते हैं भोलेबाबा सबसे न्यारे।। महामृत्युंजय को शिव आराधना का  महामन्त्र कहा जाता है। करके जाप इस मंत्र का इंसा, मौत से जीवन छीन कर लाता है।। लय प्रलय दोनों में लीन हैं शिव, आशुतोष नाम है कितना प्यारा। शिवोपासना के पर्वों में महाशिवरात्रि है सबसे न्यारा।। मृगछाल,त्रिशूल और डमरू, है उनका अति

खुशी by snehpremchand

खुशी नही मिलती बाहर से खुशी है भीतर का अहसास कोई तो कुटिया में भी खुश है किसी को महल भी नही आते रास।।K

सृजन by sneh premchand

सृष्टि का जब सृजन कर रहे थे भगवान। कर माँ की अनुपम रचना विश्व का कर दिया कल्याण।। अपनी ही इस अदभुत रचना को रच कर हो गए थे ईश्वर हैरान।।

न्यारे by snehpremchand

मयस्सर हों सदा खुशियाँ ज़मीदोज़ हो जाएं गम सारे। यही दुआ मांगते हैं मात पिता जग में, सच मे ही रच दिए न्यारे।।             स्नेहप्रेमचन्द

शायरी स्नेहप्रेमचन्द

मुझे ये तो नहीं पता शायरी किसे कहते हैं पर जब दिल की बातों को शब्दों का चुनर और भावों का घाघरा पहना दो तो कविता की सरिता खुद ही बहने लगती है।।         स्नेहप्रेमचन्द

मात पिता thought by snehpremchand

 ज़िन्दगी की गंगोत्री से मृत्यु के गंगासागर तक जो जेहन में आते हैं वे मात पिता कहलाते हैं।।          स्नेहप्रेमचन्द