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बिन उद्देश्य

सिंदूर शब्दों का

आंधी विचारों की

उतरता है गर दिल में

लेखन

महसूस होते हैं

यूं ही तो नहीं होता लेखन Thought by sneh premchand

यूं ही तो नहीं होता लेखन दिलोदिमाग को मशक्कत करनी पड़ती है भारी।। रूह विचरती है अंतर्मन के गलियारों में, अनहद नाद बजने की आ जाती है बारी।। निर्मल मन की स्याही से सृजन का बिगुल लगता है बजने। एहसासों की दुल्हन सज कर जजबातो  से,  चल पड़ती है इज़हार  के दूल्हे से मिलने।।       स्नेह प्रेमचंद        स्नेह प्रेमचंद