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Thought on independence by sneh premchand समझना तब आजादी आ गई।।

जब सबको मिल जाएगा, रोटी कपड़ा और मकान। दीया जलेगा हर आशियाने में, फैलेगा आलोक,हटेगा तमस,  न रहेगा कोई भी कोना वीरान।। तब समझ लेना असली मायनों  में आजादी आ गई।। खुली हवा में,खुले सांसों की महक फिज़ा में छा गई।। जब शिक्षा के भाल पर, लगेगा  टीका संस्कारों का, होंगे मन से दूर समस्त आधि, व्याधि और विकार।। जब हर हृदय सिंधु में निर्बाध गति से, बहेगी करुणा धार। जब मात्र जिह्वा के स्वाद के खातिर, निर्दोष बेजुबान प्राणियों पर,  नहीं चलेगी कटार। जब किसी भी आंचल की,  अस्मत नहीं होगी तार तार।। जब सरहदों पर अम्म चैन सौहार्द,  का होगा सहज प्रेम भरा संचार। जब वतन के जवान और किसान को मिलेंगे उनके पूरे अधिकार।। जब पूरा ही विश्व बन जाएगा एक परिवार।। तब समझना सही मायनों में  आजादी आ गई।। जब हर पंख को मिलेगी,  अनन्त गगन में ऊंची परवाज़। जब साहित्य कला संगीत की  त्रिवेणी में बजेगा,  विविधता में एकता का साज।। जब शोषण और अत्याचार के  खिलाफ उठेगी एक जुट होकर पूरे वतन की आवाज़। जब बेरोज़गारी हटा,  सबको रोजगार देने का,  हो जाएगा आगाज़। तब समझना सही मायनों में  आजादी आ गई।। जब मलिन मनों से  अंधकार के धुंध कुहासे