जब भी कोई रूह रेजा रेजा हो कर जाती है। पूरी कायनात लगती है सिसकने, प्रकृति भी अपना रौद्र रूप दिखाती है।। कभी सूखा,कभी बाढ़,कभी महामारी के रूप में जलजला लेे आती है।। जब कहीं भी कभी भी बेजुबान,निर्दोष जानवरों पर कटार चलाई जाती है। बेबसी हो जाती है बेबस, बददुआ आह की सरगम गाती है।। स्नेह प्रेमचंद र