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एक ही वृक्ष के हैं हम(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*एक ही वृक्ष के हैं हम फल,फूल,पत्ते, कली और हरी भरी शाखाएं* *विविधता है बेशक बाहरी स्वरूपों में हमारे, पर मन की एकता की मिलती हैं राहें* *कहीं न कहीं मन एक सा है हमारा* *जो एक ही प्लेटफार्म पर आना चाहें* *अधिकार संग आती है जिम्मेदारी भी* *हो बेहतर ये सत्य कभी भूल ना जाएं* *कुछ तो कर्तव्य कर्म हैं हमारे मातृभूमि के लिए, गर दिल से हम करना चाहें* *नजर नहीं नजरिया होता है खास, बदल सकता है बहुत कुछ,  गर सच्चे प्रयासों को सच्चे दिल से अपनाएं* *एक और एक होते हैं ग्यारह* *इस सत्य को हम सही समय पर समझ पाएं* *कुछ लोग भीड़ का हिस्सा होते हैं, कुछ अपने पीछे भीड़ बना देते हैं विकल्प दोनों होते हैं सामने, है,हम पर जिस पर चयन का बटन दबाएं* शब्दों से अधिक दोस्ती नहीं है मेरी, वरना सीधे सीधे बता देती, *क्या छोड़ें और क्या अपनाएं* *समूह मात्र नहीं परिवार है ये* हो बेहतर गर पूरा हिसार  इस परिवार में आए।।