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तेरे मेरे मिलन की ये रैना(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*तेरे मेरे मिलन की ये रैना, कर गई जीवन को एक दिशा प्रदान* *नई जिंदगी  नए नए सपने बने हकीकत, मिली वजूद को नई पहचान।। *रोहिल्ला से रावल तक के सफर में* किया बाबुल ने कन्यादान। आज बीत गए बरस 25 पूरे, *बड़ा विचित्र प्रेम का विज्ञान* अनुभव निभाते रहे किरदार अपना, बदला परिवेश बदला जहान। नए रिश्ते जुड़े,पुराने छूटे नहीं, नए मित्र मिले, बदला खानदान।। तुम मिले,दिल खिले, खिल गया जैसे पूरा गुलिस्तान।। सिया,सरू दो पुष्प खिले चमन में, इनकी महक से पूर्ण हुआ जहान।। तेरे मेरे मिलन की ये रैना सुहाना सफर,मंजिल आसान।। 25 बरस का मधुर सा साथ तेरा, जैसे मंदिर में घंटी,मस्जिद में अजान।। लम्हा लम्हा साया साया सा साथ रहे तुम, जैसे तन में होते हैं प्राण। पी का रंग लगा जब अंग, जिजीविषा की मिट गई थकान।। ऐसे रंगरेज से लागी लग गई अब ऐसी, सांस सांस लेती है नाम।।         स्नेह प्रेमचंद