गलत बात का समर्थन करना भी गलती करने जैसे गुनाह के समान होता है।दुर्योधन की गलती धृतराष्ट्र की गलती से बढ़ कर नही है।चीर हरण के समय यदि धृतराष्ट्र मुंह खोल लेते,तो इतिहास कलंकित न हुआ होता।यही विडम्बना है समाज मे,जब कोई एक गलती करता है तो कई बुरे लोग उसका साथ देते है,गलती वहीं रुकने की जगह पहले पाप फिर महापाप और अंत मे विनाशलीला या महाभारत का तांडव करती है।