हर मंजर धुंधला जाता है, कुछ भी नहीं बोला जाता है। एक गोला सा गले में, अटक सा जाता है।। लफ्ज़ ओढ़ लेते हैं दुशाला खामोशी का, भावों का जलजला सा आता है।। एक चीस सी उठती है सीने में एक चबका सा चब चब किए जाता है।। फर्श से अर्श तक का सफर तय करने वाली, तुझ से खून का भी दिल का भी सागर से गहरा नाता है।।