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बुलंदियां

जैसे पतंग को आसमा की बुलंदियाँ छूने के बाद भी कचरे के ढेर में चले जाना है,फिर भी वो उड़ती है, यूँ ही इंसान को भी जाना तो  मुक्तिधाम ही है,फिर भी वो कर्म कर के सफलता पाने की कोशिश करता है।