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Poem On Janmastmi यही जन्माष्टमी है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

**कान्हा से द्वारकाधीश बनने के सफर को जान कर,  कृष्ण जीवन से बहुत कुछ सीखना ही जन्माष्टमी है** **कर्मों से भाग्य बदलने के जज्बे को अपनाना ही जन्माष्टमी है** **जब धर्म का सुदर्शन चक्र अधर्म की गर्दन कलम करदे,समझो जन्माष्टमी है** जब कोई दुशासन किसी पांचाली का चीर हरण करे और उस समय माधव चीर बढ़ा कर लाज बचा ले,किसी बाला की अस्मत का सौदा कभी कहीं ना हो,यही जन्माष्टमी है।। हालात कितने भी विषम क्यों ना हों हौंसले बुलंद होने चाहिएं,उफनती नदी भी राह दे देगी,कारागार के कपाट भी खुल जाएंगे,इस सत्य को समझना ही जन्माष्टमी है।। **मीरा की भगति,राधा का अगाध प्रेम,रुक्मिणी का कान्हा को पति रूप में पाना प्रेम के अलग अलग रूपों को जान लेना ही जन्माष्टमी है** **जब अहंकार की मटकी फोड़ कर जनकल्याण की सोच पनपने लगे,समझ लेना जन्माष्टमी आ गई** **जब अच्छाई के माधव बुराई की पूतना का वध कर दें,समझो जन्माष्टमी है** **कुछ भी छूटने पर टूटना नहीं है, जीवन आनंद का सागर है,अवसाद, विषाद, नैराश्य भाव को चित में पनपने ही नहीं देना है,इस प्रमुख भाव को सदा सदा के लिए सहेजना ही जन्माष्टमी है** **जब जब भी हो हानि धर