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कड़वा है मगर सत्य है

आस्था

आस्था जब पहनती है लहंगा प्रेम का, और ओढ़ती है चुनर विश्वास का, फिर वह श्रद्धा बन जाती है।। श्रद्धा जब मांग भरती है समर्पण की, मंगलसूत्र पहनती है भाव का, फिर वह भगति बन जाती है।। भगति जब होती है सच्चे मन से,  जब साड़ी पहनती है वो निर्मलता की, घूंघट करती है सौहार्द का, फिर कण कण में रमती है।।

राधा कान्हा

यही तो प्रेम है

देखिए तो सही

करुणा

पिता है वो त्रिवेणी

मोह

करुणा का अनहद नाद

प से

तराजू में

क्या क्या सीखें कान्हा से हम???? विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा

क्या क्या सीखें हम कान्हा से???? सच्चा प्रेम क्या होता है, ये कान्हा से सीखे हम। राधा कान्हा की प्रेम कहानी, जितनी सोचो उतनी कम।। अपना भाग्य आप बनाने की कला,ये भी कृष्ण ने सिखाया है। कर्म ही जीवन है की तान को बड़े प्रेम से कान्हा ने गाया है।। कर्म करो,पर फल की इच्छा न करो,गीता में कान्हा ने समझाया है। ज़रूरी कर्म को करना ही है,इस धुन को नगमा बनाया है।। रिश्तों को कान्हा ने बड़ी सहजता से निभाया है। विषम परिस्थितियों से बिखरना नहीं निखरना है, कह कर नहीं कर के दिखाया है।। जाने क्या क्या छूटा कान्हा से,फिर भी कोई मलाल नहीं उनके चित में आया है। गोकुल छूटा,वृंदावन छूटा,छूटी मुरलिया,राधा,बचपन के मित्र वो सारे। फिर भी चलते रहे, वे रुके नहीं, अपने कर्तव्य से कभी न हारे।। मोहग्रस्त हुए जब पार्थ रणभूमि में, हर लिए उनके मन के सारे अंधियारे। नहीं माधव सा कोई पथप्रदर्शक, खोजो चाहे द्वारे द्वारे।। नारी अस्मिता के सच्चे रखवाले, चीर बढ़ाया पांचाली का इतना, दुष्ट दुशासन खींच खींच कर हारे।। मुरली से सुदर्शन चक्र के सफर में मोहन कर्तव्य कर्म से कभी न हारे।।         स्नेह प्रेमचंद

प्रेम से सुंदर है संसार

भाई भाई का नाता गहरा((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

लबरेज

स्वयंबर करुणा का

एक छत

यही प्रेम है

मयस्सर

जलती है आग