जब धड़कन धड़कन संग बतियाती है फिर हर शब्दावली अर्थहीन हो जाती है फिर मौन मुखर हो जाता है ये दिल का दिल से गहरा नाता है जब संवाद खत्म हो जाता है फिर संबंध पड़ा सुस्ताता है कर्म ही असली परिचय पत्र होते हैं व्यक्ति का
जब धड़कन धड़कन संग बतियाती है फिर हर शब्दावली अर्थ हीन हो जाती है फिर मौन मुखर हो जाता है ये दिल का दिल से नाता है मुझे तो प्रेम मापने का ये एक ही पैमाना समझ में आता है होता है जिससे प्रेम सच्चा फिर सिर्फ नजर वो आता है अक्सर देखा है जीवन में शब्दों का स्थान भाव जीत ले जाता है हर भाव के लिए शब्दावली बनी ही नहीं,वरना जो लेखक कहना चाहता है वो श्रोता तक पहुंच नहीं पाता है।। स्नेह प्रेमचंद