लेखन आत्ममंथन के गलियारों में विचरण करता हुआ राह में आत्मबोध से मिलता है,आत्म साक्षात्कार कर, आत्मसुधार कर अपना सफर जारी रखता है,लेखन प्रक्रिया है,प्रतिक्रिया है,अनुभव है,सम्वेदना है,अहसास ए दिल है,करुणा है,दूरदर्शिता है,आपबीती है,जगबीती है,अनन्त सोच का परिणाम है विहंगम विस्तृत है,लेखन अहसास ए रूहानियत है, आत्मा का भोजन है,लेखन की कोई सरहदें नहीं,कोई लक्ष्मण रेखा नहीं।सोच जब अपनी मांग में कर्म का सिंदूर भर लेती है,तो परिणाम में लेखन का जन्म होता है। सोच और कर्म ही तो लेखन के मात पिता हैं।लेखन सारगर्भित हो,पथप्रदर्शन करे, तभी लेखन की सार्थकता सिद्ध होती है। अनुभव,सम्वेदना,चेतना,सहजता और उदगार इसके भाई बहन हैं।जब हृदय क्षेत्र में भावों की कुदाली चलती है तो लेखन का अंकुर प्रस्फुटित हो जाता है,अल्फ़ाज़ों की हवा,भावों का पानी और चेतना की माटी में एक मजबूत दरख़्त के रूप में उभरता है लेखन,विचार तो हर हृदय में जन्म लेते हैं,बस हर हृदय उन विचारों को प्रकट नहीं कर पाता। इज़हार ए अहसास बस सब को नहीं आता,चयन ए अल्फ़ाज़ नहीं आता।। लेखन आत्ममंथन के बाद निकला हुआ अमृत है जिससे पूरा जग लाभान्