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Showing posts from May, 2020

आज क्या है

मेरे दिल मे आज क्या है  तू कहे तो मैं बता दूं। मेरे दिल मे आज़ ये है, उदास चेहरों पर मुस्कान ला दूँ।।       Snehpremchand

सिला

हमने जो साथ चाहा उनका उन्होंने दामन छुड़ा लिया। हे मौला, हमारी मोहब्बत का ऐसा क्यों उन्होंने सिला दिया।।           Snehpremchand

अपना thought by snehpremchand

जिन्हें समझा था अपना हमने उन्होंने ही हमको रूसवा किया। कैसे टूटे तार रिश्तों के गलतफहमियों ने सब कुछ  गलत कर दिया।।             Snehpremchand

दूरियां

दूरियां इस कदर भी न बढ़ाओ कि फिर पास आना न हो। वो ज़िन्दगी ही क्या जिसमे मुस्कुराना न हो।।            Snehpremchand  

मिठाई

मिठाई खिला कर ही किसी का मुंह मीठा नही किया जाता। किसी से दो मीठे बोल बोल लो मिठास पूरे समा में घुल जाएगी।           Snehpremchand

उलझन

उलझनों के धागे सुलझाते सुलझाते, कुछ बेगानों को अपना बनाते बनाते, ज़िम्मेदारियों के चूनर का घूंघट बनाते बनाते,  कब ज़िन्दगी पूरी हो जाती है,पता ही नहीं चलता।।

हमने देखी है

काले बालो में सफेदी की चमक आते हमने देखी है। बचपन की ज़िद समझौते में बदलती हमने देखी है।                  Snehpremchand

वरदान

भारत,चीन, जर्मनी,जापान। अमेरिका हो या पाकिस्तान। माँ तो माँ होती है इस जग में, माँ के आगे नतमस्तक जहान।। माँ महिमा है,माँ गरिमा है, माँ कुदरत का धरा जो वरदान। ।               स्नेहप्रेमचंद

दीये thought by snehpremchand

वो तो जो जी में आया,कह कर चल दिये । पर ये सब कहने से बुझ गए आशा के दीये ।।                    स्नेहप्रेमचंद

दिल

दिल ने एक दिन कहा धड़कन से, ज्यों ही तुम चली जाती हो मैं तत्क्षण ही थम जाता हूँ। फिर चाहे कोई कर ले लाख कोशिशें, नही लौट के आता हूँ।। तुम हो तो मैं हूँ प्रिय, तुम चेतना मैं प्रेम बन जाता हूँ।।               स्नेहप्रेमचंद

खुशी

खुशी नही मिलती बाहर से खुशी है भीतर का अहसास। कोई तो कुटिया में भी खुश है, किसी को महल भी नही  आते रास।।               स्नेहप्रेमचंद

छुटियाँ

आती है जब गर्मी की छुट्टियाँ,  वो धीरे से याद आ जाती है। एक कशिश सी थी फिर जाने में, याद भी मुस्कान ले आती है।। स्नेहप्रेमचंद

चाहिए

बोलने वाले को श्रोता चाहिए, पढ़ाने वाले को पाठक चाहिए, दर्द बताने वाले को हमदर्द चाहिए, वैसे ही हर बच्चे को माँ  चाहिए।।           स्नेहप्रेमचंद

त्याग thought by snehpremchand

सिया से बड़ा था त्याग उर्मिला का, मुश्किल है करना अहसास। बजी जीवन मे तन्हाई की शहनाई बरस चौदह,सौमित्रेय को नहीं, राम को मिला था वनवास।। मुख्य केंद्र बिंदु मानस में रही सिया, उर्मिला विरह वेदना का नहीं हुआ आभास। भ्रात, प्रेम की खातिर लक्ष्मण ने भार्या को दी विरह वेदना,तन्हाई मन में,तन में दीर्घ श्वाश।।                   स्नेहप्रेमचंद

सजल thought by snehpremchand

नयन सजल , लब हैं,  आज मेरे बिल्कुल खामोश। मन धुआँ धुआँ सा है  बस कहने को ही है होश।। पीड़ा कहार रही अंतर्मन की, मन चाहे सुकून की आगोश।। कुछ चटक गया,कुछ दरक गया चेतना सहम गई,मुस्कान लगी है रोने, चित्त चिंता लेने लगी अंगड़ाई, उदासी की बज रही शहनाई, कुछ यक्ष प्रश्न से निरुतर हैं मन के किसी कोने में, धुआँ धुआँ धूल भरे से ये धुंध कुहासे कुछ खो गया है बहुत कीमती शिथिल चेतना,निष्कर्म मन के हो गए रासे।।               स्नेहप्रेमचंद 

एक अजब कोलाहल

एक अजब कोलाहल सा था,खामोशी करती थी इज़हार। शून्य सन्नाटे शोर मचाते थे,हर पल धुँधले मंज़र से दीदार।।

फेरहिस्त thought by snehpremchand

लेखन thought by snehpremchand

लेखन आत्ममंथन के गलियारों में विचरण करता हुआ राह में आत्मबोध से मिलता है,आत्म साक्षात्कार कर, आत्मसुधार कर अपना सफर जारी रखता है,लेखन प्रक्रिया है,प्रतिक्रिया है,अनुभव है,सम्वेदना है,अहसास ए दिल है,करुणा है,दूरदर्शिता है,आपबीती है,जगबीती है,अनन्त सोच का परिणाम है विहंगम विस्तृत है,लेखन अहसास ए रूहानियत है, आत्मा का भोजन है,लेखन की कोई सरहदें नहीं,कोई लक्ष्मण रेखा नहीं।सोच जब अपनी मांग में कर्म का सिंदूर भर लेती है,तो परिणाम में लेखन का जन्म होता है। सोच और कर्म ही तो लेखन के मात पिता हैं।लेखन सारगर्भित हो,पथप्रदर्शन करे, तभी लेखन की सार्थकता सिद्ध होती है। अनुभव,सम्वेदना,चेतना,सहजता और उदगार इसके भाई बहन हैं।जब हृदय क्षेत्र में भावों की कुदाली चलती है तो लेखन का अंकुर प्रस्फुटित हो जाता है,अल्फ़ाज़ों की हवा,भावों का पानी और चेतना की माटी में एक मजबूत दरख़्त के रूप में उभरता है लेखन,विचार तो हर हृदय में जन्म लेते हैं,बस हर हृदय उन विचारों को प्रकट नहीं कर पाता। इज़हार ए अहसास बस सब को नहीं आता,चयन ए अल्फ़ाज़ नहीं आता।। लेखन आत्ममंथन के बाद निकला हुआ अमृत है जिससे पूरा जग लाभान्

छोड़ो दामन चिंता का thought by snehoremchand

छोड़ो दामन चिंता का, चित्त चिंता, हर लेती है मन का चैन। लब बेशक न कहें अल्फ़ाज़ कोई, सब कुछ कह जाते हैं नैन।। थाम कर रखते हैं गर चिंता को नहीं आती भोर,रहती है रैन।। न रहे मलाल,न कोई पछतावा बहते हैं तो बहने दो नैन।। प्रतिशोध से क्षमा बड़ी है, बेचैनी से बड़ा है चैन।। चिंतन करो,चिंता नहीं, आएगी भोर,बीतेगी रैन।। एक बात आती है समझ में, नही खोना हमें मन का चैन।। शो मस्ट गो ऑन,यही जीवन है, जीवन के हैं दो हिस्से,हो दिवस चाहे हो रैन।।               स्नेहप्रेमचंद

सरहदें thought by snehpremchand

नहीं सरहदें कोई सोच की, अनन्त गगन सा इसका विस्तार। जहाँ न पहुंचे रवि तहाँ पहुंचे कवि, है इस बात का औचित्य और सार।। शून्य सन्नाटे भी लगते हैं बोलने, कायनात में विचरण करने लगते विचार।। कतरे कतरे से बनता है सागर, ज़र्रे ज़र्रे से बनती है कायनात। लम्हे लम्हे से युग बनते हैं, ज़िन्दगी खुदा की सुंदरतम सौगात।। बस सोच को सोचने दो सीमाहीन सा, भावों का, कर दो, सुंदर अल्फ़ाज़ों से शृंगार।।                   स्नेहप्रेमचंद

सिलसिला

न मैंने कहा, न उसने पूछा, रहा यूँ ही ये सिलसिला जारी। एक दिन ऐसा आया जलजला,  उसके जाने की आ गयी बारी।

समावेश

विनाश निश्चित है।।

शब्द

हम क्या बोलते हैं,काफी हद तक,  हमारे व्यक्तित्व के बारे में बता जाता है। जो सोचते हैं वही तो बोलते हैं, सोच को शब्दों का आईना दिखा जाता है।।

तुरपाई

रिश्तों की कच्ची  उड़दन की,  माँ करती रहती है तुरपाई। कुछ नही कहती,चुप ही रहती किस माटी की माँ है बनाई।। लगती है गर चोट हमें, बन जाती है माँ पल भर में दवाई।। है कौन सी ऐसी साँझ और भोर जब माँ की न हो याद  आई ।।             स्नेहप्रेमचंद

अधिकार

अपने विचारों को कहने का  सब को होता है अधिकार। बस रहें वो मर्यादा की सीमा में सोच में हो न कोई विकार।। शब्द न लांघे अपनी गरिमा, भावों की लक्ष्मण रेखा भी रहे बरकरार। बस शब्द हमारे कभी बने न कहीं भी कोई भी तकरार।।        स्नेहप्रेमचंद           

लेखन thought by snehpremchand

लेखन सार्वभौमिक,सर्वकालिक,प्रासंगिक होता है।।सवःके लिए नहीं सर्वाय के लिए होता है।।                         स्नेहप्रेमचंद

व्यवहार

दूसरे के व्यवहार से अपनी शांति भंग न करो। आप नही तो वक़्त ही  सिखा देगा उनको थोड़ा तो मन में धीर धरो।।                  स्नेहप्रेमचंद

पाँच बहनें पाँच भाई

ममता,विनम्रता,दया,सन्तोष,सहिष्णुता इन पांचों के बहनो के पांच ही हैं भाई। प्रेम,सदाचार,विवेक,अनुराग और सुसंस्कार   पाँचों ने इन पांचों से राखी बंधवाई।                     स्नेहप्रेमचंद

तप तप thought by sneh premchand

तप तप सोना बनता है कुंदन, जग सारा जाने ये सुंदर सी बात। सींचने पड़ते हैं खून पसीने से, सारे सपने सारी ख़्वाईशात। विषमता भरा है ये संसार, कभी उष्ण शीत,कभी सूखा बरसात।। कतरा कतरा बनाता है सागर, ज़र्रे ज़र्रे से बनती कायनात।। सब ज़रूरी है इस जग में, सूईं से तलवार तक।। कुछ भी मिलना नहीं असम्भव धरा से आकाश तक।।               स्नेहप्रेमचन्द

मित्र thought by snehpremchand

सच्चे मित्र दूर होकर भी,बिन बोले भी,बिन मिले भी सच मे होते है बहुत ही पास, यही खज़ाना ही सबसे बढ़ कर,है धनवान वो सच्चे मित्र है जिस्के पास।।                    स्नेहप्रेमचंद

दोहरी क्षति

माज़ी पर तो जोर नहीं पर मुस्तक बिल पर है हमारा अख्तियार। खोये रहेंगे गर हम माज़ी में दोहरी क्षति का मिलेगा उपहार।। जो बीत गया है वह दौर ना आएगा,  पर आने वाला है जो पल, वो हमारी कोशिशों से सुंदर बन जाएगा।।   स्नेहप्रेमचंद माज़ी---अतीत मुस्तकबिल---भविष्य

किताब

ज़िन्दगी की किताब बड़ी अजीब है जितना पढ़ो पाठयक्रम बढ़ता जाता है। थोड़ा बहुत समझ मे आता है, कुछ याद रह जाता है, कुछ बिल्कुल ही समझ नही आता। कुछ तो बस उलझनें बढ़ाता है।।         स्नेहप्रेमचंद

शक्ति thought by snehpremchand

इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमज़ोर हो न हम चलें नेक रास्ते पर ऐसे भूल कर भी कोई भूल हो न इतनी सोच हमे देना दाता हम किसी का दिल अनजाने में भी न दुखाएं इतनी समझ हमे देना दाता खुशियां किसी के चेहरे पर लाएं इतनी करुणा हमे देना दाता  एक रोटी और चार जने हों तो रोटी के टुकड़े चार ही कर के खाएँ

सोलह श्रृंगार

चार पहिये की गाड़ी को कहते है कार, जो हर हाल में प्रिय होता है,वो होता है प्यार, आत्मा का मिलन जब होता है परमात्मा से,ज़िन्दगी मौत का वरण कर कर लेती है सोलह श्रृंगार।।             स्नेहप्रेमचंद

ज्ञान

विरहणी आत्मा जब मिल जाती है प्रीतम परमात्मा से,लोग उसे संज्ञा मौत की दे देते हैं, शौक का नही उत्सवबेला है ये,बाल गोबिंन भगत निजसुत के तन त्याजने पर पतोहू  को यही ज्ञान देते है।             स्नेहप्रेमचंद

बाल गोबिंन भगत thought by snehpremchand

लय, ताल,गति की अदभुत त्रिवेणी बालगोबिन भगत के गायन में थी विराजमान , संगीत की गंगोत्री से जन्मे ये धरतीपुत्र,ग्रहस्थ होते हुए भी सच्चे साधु के रूप में थे वरदान।।

चिंता thought by snehpremchand

अपेक्षाओं और वास्तविकता का अंतर ही चिंता का कारण होता है, कम अपेक्षाएं,कम चिंता,इंसा चैन की निंदिया सोता है।।             स्नेहप्रेमचंद

स्नेह

रिश्तों के धागों में अक्सर गांठे जब पड़ जाती हैं, स्नेह ही है फिर केवल धरा पर,जो  इनको खोल फिर पाती है।।                स्नेहप्रेमचंद

विरहिणी

विरहणी आत्मा मिल जाती है प्रीतम ईश्वर से,जब तन साथ छोड़ चला जाता है, मोहग्रस्त तो रोता है,पर प्रेमी नए मिलन का उत्सव बनाता है।।                 स्नेहप्रेमचंद

बहस

बहस से बातों में जीत भी गए तो दूसरी तरफ वो रिश्ता तो गए हम हार, बहस नही प्रेम है सर्वोत्तम तरीका,प्रेम है जीवन का सच्चा श्रृंगार।।               स्नेहप्रेमचंद

सफर

जब तक रास्ते समझ मे आते हैं,सफर ही हो जाता है पूरा, सही समय पर सही काम हो,हो जीवन मे सही समय पर आशा का सवेरा।।                     स्नेहप्रेमचंद

क्रोध

क्रोध में अक्सर मन की बात जुबान पर है आ जाती। सत्य का प्रतिबिंब होता है क्रोध कई बार, बेहतर है सच्चाई खुद ही सामने आती।।                     स्नेहप्रेमचंद

भाषा thought by snehpremchand

भाव या शब्द poem by snehpremchand

शब्द परिचय thought by snehpremchand

शब्द संभाले बोलिये, शब्द आपके,आपका परिचय दे जाते हैं। हम कब,किस से,क्यों,क्या बात कर रहे हैं, पहले विचारो,फिर बोलो, बोल कर मत सोचो,सोच कर बोलो। द्रौपदी का एक वक्तव्य अंधे का पुत्र अंधा महाभारत का कारण बना। कुंती ने बिन देखे बिन सोचे लायी गयी भिक्षा को आपस मे बाँट लेने को कह दिया,परिणाम सब जानते हैं। भाषा को विवेक के तराजू से तौलते हुए ही मुखद्वार से बाहर निकालो, हमारा शब्द किसी को खुश न करे कोई बात नही,पर किसी की भावनाओं को आहत करे,बहुत बड़ी बात है।

प्रेम। thought by snehpremchand

प्रेम है जीवन का आधार, माँ सावित्री की कृपा हो सब पर, बहे सर्वत्र प्रेम की गंगधार।। स्नेहसुमन हम कर रहे अर्पित, इन्हें कर लेना स्वीकार।। आरुषि के आने से ज्यूँ  उजला हो जाता है संसार, एक अभिनव पहल करें हम सारे, लें लोगों के दर्द उधार।। यही राज है हर चारु चितवन का, करे इंदु की शीतलता तन मन का परिष्कार।। कोई परी आए उतर मेघों से पूरे जोश से, कर दे मन से दूर समस्त विकार।।

माँ रोटी बन जाती है thought by snehpremchand

भूखा हो गर बच्चा, माँ झट रोटी बन जाती है। प्यासा हो गर बच्चा, माँ झट पानी बन जाती है। बेचैनी हो गर चित्त में कोई, माँ सुकून बन जाती है। गर समस्या हो कोई बच्चे को, माँ तत्क्षण समाधान बन जाती है।। उदास हो गर बच्चा, मा हंसी बन जाती है। दर्द हो गर बच्चे को, मा दवा बन जाती है। ऐसी होती है माँ, तभी ताउम्र याद वो आती है।