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क्या भूलूं क्या याद करूं मैं

राखी 2023

यादों के झरोखों से

कई बार

जाने वाले

जाने वाले

सांझ होते ही

सांझहोते ही  माँ याद आ जाती है पश्चिम में डूबते सूरज की लालिमा जैसे दया सी हम पर खाती है गोधूलि की इस बेला में उड़ती धूल जैसे मन के भाव दिखाती है डोर से उतारते सूखे कपड़ो को मानो कोई ललना यूँ ही भर ले जाती है पंछी लौटते हैं अपने अपने घोंसलों में उनके इंतज़ार में छोटे पंछियों की वाणी हृदय छलनी कर जाती है आधे भावों बिकती सब्ज़ी कैसे पड़ी सुस्ताती हे सांझ होते ही माँ की याद आ जाती है

समन्दर

अक्सर यादों के समंदर में मेरे अपने अंदर में मेरे हर अहसास में मेरे हर जज्बात में सपनो की सौगात में आप ऐसे शामिल हो  जैसे बर्फ में पानी, मां के लिए नानी, राजा के लिए रानी।।

फिर आई poem by sneh premchand

फिर आई गरमी की छुट्टियां, फिर तेरी याद ने ली अंगड़ाई। फिर वो देहरी चौखट याद आए, फिर तेरे आंचल की महक याद आई। फिर तेरी रसोई की सौंधी सौंधी सी  महक ने अंतर्मन में एक अजब हलचल है मचाई। फिर याद आया तेरा कमरा बिस्तर, तेरा हौले से हाथ पकड़ भीतर लेे जाना, खोल कपाट अलमारी के परिधान दिखाना, फिर हिया में यादों ने मीठी सी हूक मचाई। फिर याद आया तेरा अंदाज़ ए गुफ्तगू वो लहजे में लरज़ फिर याद आई। फिर याद आया वो सहज भाव तेरा, वो तेरी कर्मठता,जिजीविषा याद आई। फिर याद आई वो निश्छल मुस्कान, फिर याद आया मेरा,वो बनना तेरी परछाई। फिर याद आया वो साग तेरे हाथ का, वो लपट कढ़ी की,वो उध डे रिश्तों की करना तुरपाई।। फिर याद आया तेरा नहा धो कर  ढ़ योड़ी पर  चौकड़ी जमाना, गजब थी मां तेरी रोशनाई।। फिर याद आया तेरा गूंद बनाना, बाजारों के  चक्कर लगाना, नई नई सी चद्दर बिछाना, पूरे घर को चमका ना, वो दीवाली की बेहतरीन सफाई।। फिर याद आया तेरा वो गोले बनाना, वो घंटों चलाते रहना सिलाई। क्या भूलूं,क्या याद करूं मैं, हृदय सिंधु से  उठी, लहर यादों की, कभी वर्तमान कभी माजी के साहिल से टकराई।। फिर आई गरमी की छुट्ट

छुटियाँ

आती है जब गर्मी की छुट्टियाँ,  वो धीरे से याद आ जाती है। एक कशिश सी थी फिर जाने में, याद भी मुस्कान ले आती है।। स्नेहप्रेमचंद