Skip to main content

Posts

Showing posts from April, 2022

दस्तक

एक दिन

रहनुमा

मेहनत की सड़क

स्वार्थ

हकदार

फेसबुक

तेरा मेरा

वेदना

दिन रात

करुणा

स्वार्थ

शिल्पकार

हम क्या लेते हैं हर ऋतु से

हर ऋतु

नहीं रहता बसंत सदा

हर पत्ता अलग होना चाहता है शाख से

do

दो वंश मिले,दो फूल खिले,दो सपनो ने किया श्रृंगार। दो दूर देश के पथिकों ने संग संग चलना किया स्वीकार।।

मजदूर दिवस

Suvichar........aaz mazdur diwas h...........jin mehlon me ham rehte he in,unko mazdur bnate h,jin sadkon per ham bdi bdi gadiyan chlate hein,unhe apni kdi mehnet se kdi dhup me wo hi bnate h,jin maals ,cinema halls,or picnic spots me ja ker ham mnoranjan kerte hein,WO bhi mazdur bnate h.ham khate h pakwaan anekon,WO sukhi roti sabzi khate h ,dete hein jab unko mazduri,tab paise kam kerwate h,unki bebsi,mazburi ki ho jati h intihaa,jab ham ktu vachon ke teer chubate hein,Jo kaam wo kerte hein din bher,ham soch ke bhi ghabrate h,nafrat,dutkaar ke nhi,hein WO aader,prem or Sam maan  ke adhikaari,bahut so liye,ab to bandhu aa gyi h jagne ki baari..........realize their sufferings,problems and pains,or aage badh ker hath badana......zruri h

शब्द हैं हनुमान तो

रहे ना रहे

शो मस्ट गो ऑन

रहें ना रहें हम

यह पेड़

भोर

पैमाने खुशी के

स्वार्थ का पुतला

जहां कदर ना हो(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा छायाचित्र ऐना द्वारा))

कौन सी ऐसी सांझ भोर है

भुलाए से भी नहीं भूलता

अहंकार और विनम्रता

Suvichar.....ahenkaar or vinamrta.......ek mod per mile jab dono,hua dono me kuch aisa vartalaap.suna jisne WO LGA sochne,mein kya kerta yun kriyaklaap.rehti ho tum DRI DRI si,mein seena taan ke rehta gun.jiski lathi,bheins ussi ki,ye aaz mein Sab se kehta hun.sun USS ki ahenkaar bhri batein,vinamrta mand mand muskaai.kyun nhi samjhe tum yugon yugon se.Jo bat muje h samaj mein aayi.raavan me tum thei,duryodhan me tum thei,gher gher mein tum ne apni jagah bnaii..mein ram me thi,kanha me thi,her paavan aatma ne mere liye bahein feilayi.sun vinamrta ki batein jeet ker bhi haar gya ahenkaar.haar ker nhi jeet gyi vinamrta,tha uska Aisa sanskaar....

बड़ी होती जाती है बेटी

बड़ी होती जाती है बेटी और मां छोटी होती जाती है। वक्त का पहिया घूमता है ऐसे,जिंदगी नए नए चेहरे लगाती है।। बचपन में मां सिखाती है बेटी को, बाद में यही बेटी शिक्षक बन जाती है। पिता से भी अधिक वो मां के करीब आ जाती है।।

रेजा रेजा

बेशक

बसेरा

किया जब

धरती धोरा की

दूर कहीं

भोर में

हो बेहतर

पुष्प सा

आकार

बहुत ही खास मूढ़ में

सागर दिल का

बांवरा है मन

प्रेम से गहरा कोई रंग नहीं

प्रेम से गहरा कोई रंग नहीं, है इस बात का मुझे यकीन।

तुझ सा कोई रंगरेज नहीं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

रंग दे जो सबको प्रेम के रंग से, सच ऐसा तुझ सा कोई रंगरेज नहीं। बड़ा पक्का रंग था री तेरे रंग का, यह सत्य मानने से मुझे गुरेज नहीं।।

देख सकते हैं तुझे

देख सकते हैं तुझे, मात्र हम तस्वीर में। आ जाए तूं लौट कर वापस, नहीं लिखा अब तकदीर में।।