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मां सेतु बन जाती है(विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*जब रिश्तों में आ जाती है कोई दूरी,तब माँ सेतु बन जाती है* *जीवन की भूल भुलैया में मां राह सरल बन जाती है* *जब रिश्तों में आ जाये कोई कड़वाहट, तब माँ शक्कर बन जाती है* *भूख लगे गर बच्चे को, मां रोटी बन जाती है* *नींद अगर आए बच्चे को मां लोरी बन जाती है* *शक्ल देख हरारत पहचानने वाली मां, जीवन की धुरि बन जाती है* *जिंदगी का परिचय अनुभूतियों से करवाने वाली मां जीवन का पहला शिक्षक बन जाती है* *मित्र,मार्गदर्शक,सलाहकार जाने कितने किरदार निभाती है* *हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध कराने वाली मां हमारे हर क्यों,कब,कैसे,कितने का तत्क्षन उत्तर बन जाती है* *लफ्ज़ नहीं लहजे पहचान लेती है मां,मां की शक्ति के आगे कायनात भी झुक जाती है* *जीवन के इस अग्नि पथ को मां ही सहज पथ बनाती है* *धूप अगर लगती है घणी, मां छाया बन जाती है* *जब सब पीछे हट जाते हैं मां सबसे आगे आती है* *हमें हमारे गुण दोषों दोनों संग मां ही तो अपनाती है जीवन समर में मां ही तो कदम कदम पर हमारा आत्मविश्वास बढ़ाती है* *खुद मझधार में हो कर भी हमे सहली का पता बताती है* *जाने कितने ही झगड़ों पर समझौते का तिलक लगाती है* *कितना