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भोर में

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किताब कातिब की

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इज़हार

भाव या शब्द Thought by Sneh premchand

प्रेम

प्रेम के कारण ही राम ने शबरी के झूठे बेर खाये थे। प्रेम के कारण ही गोविंद ने सुदामा का पोहा खाया था। प्रेम के कारण ही मोहन ने विदुर के घर भाजी खाई थी। ढाई अक्षर प्रेम के पढे सो पंडित होय। प्रेम प्रेम कर रे मना, प्रेम से बढ़ कर न कोय।।            स्नेह प्रेमचंद

भाव या शब्द poem by snehpremchand

परिधान। thought by sneh prem chand

जैसे ही कोई भी भाव जेहन की चौखट पर दस्तक दे,झट से अल्फ़ाज़ों का पहना देती हूं परिधान। जाने कब किस भाव का झोंका आ कर पल भर में चला जाए, हो बेहतर हम रहें सावधान।।               स्नेहप्रेमचन्द

लेखन

न सरहद,न सीमा,न अंत कोई लेखन का, असीम ब्रह्मांड सा इसका विस्तार। जितनी होती ज़िन्दगी की महक सूंघने की शक्ति बढ़ता रहता उतना ही इसका आकार। जितना गहरा जाओगे,भावों के मोती अल्फ़ाज़ों के हाथों से,बन्धु खोज कर लाओगे।।

भाव poem by snehpremchand