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चिंगारी(( विचार स्नेह प्रेमचंद))

सबके भीतर छिपी हुई है एक चिनगारी इसे राख बनाते हैं या शोला सबकी अपनी अपनी तैयारी आलस्य तो है दीमक की तरह कर्मों से ही सदा से बाजी मारी कोई निखरता है संघर्षों से कोई पूर्णतया बिखर जाता है कोई सामना करता है  चुनौतियों का डट के, कोई भीगी बिल्ली बन जाता है परिवेश परवरिश सबकी अलग हैं कोई उद्दंड कोई आज्ञाकारी  सबके भीतर छिपी हुई है एक छोटी सी चिंगारी इसे राख बनाएं या हम शोला सबकी अपनी अपनी तैयारी *जो चुनते हैं वही बुनते हैं* हमारे सही चयन ने सदा हमारी जिंदगी संवारी कौरवों ने चुना युद्ध और ठुकराया शांति प्रस्ताव माधव का महाभारत की भड़क गई थी चिंगारी सबके भीतर एक हनुमान छिपा है पर राम से मुलाकात होगी उसी हनुमान की, जिसे अपनी शक्तियों को जगाना आता होगा जिसे घणी मावस में पूनम का चांद खिलाना आता होगा जिसे अपने कर्मों से भाग्य बदलना आता होगा बहुत सो लिए अब तो जागने की  बंधु आ गई है बारी सबके भीतर छिपी हुई है एक छोटी सी चिनगारी राख बनाते हैं या शोला सबकी अपनी अपनी तैयारी अथाह असीमित संभावनाओं को खंगाल बेहतरीन विकल्पों का चयन, आत्म मंथन के बाद आत्म सुधार की राह दिखाता है किसी को जल्दी ...

ओ मांसाहारी ( Thought by Sneh premchand)