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प्रेम वृक्ष

प्रेम वृक्ष पर सिर्फ और सिर्फ स्नेहसुमन ही खिलते हैं।यह कोई राज नही,यथार्थ है।प्रेम का आधार कभी चारु चितवन नही, अच्छा हृदय होता है।अच्छा हृदय पूर्णिमा के इंदु की तरह आलोक का उदय करता है,लगता है जैसे प्रेम हिंडोले में मेघों से निकल कोई स्वप्नलोक से परी आयी हो,ऐसा नयनाभिराम दृश्य जोश पैदा करता है,यह अभिनव नही पुरातन सोच है।पूरब में जब आरुषि दिखती है,सब सुंदर हो जाता है,जैसे माता सावित्री सिंह सवारी कर रही हो।सब प्रेममय सुहानी सी छटा लिए हो जाता है,दूर किसी मंदिर के घड़ियाल से पावनी सी महक आती है,जैसे कोई नरेश मन्दिर में दर्शन के लिए आया हो।सब प्रेममय हो जाता है,अमिट से लगता है।

प्रेम वृक्ष

प्रेम वृक्ष पर सिर्फ और सिर्फ स्नेहसुमन ही खिलते हैं।यह कोई राज नही,यथार्थ है।प्रेम का आधार कभी चारु चितवन नही, अच्छा हृदय होता है।अच्छा हृदय पूर्णिमा के इंदु की तरह आलोक का उदय करता है,लगता है जैसे प्रेम हिंडोले में मेघों से निकल कोई स्वप्नलोक से परी आयी हो,ऐसा नयनाभिराम दृश्य जोश पैदा करता है,यह अभिनव नही पुरातन सोच है।पूरब में जब आरुषि दिखती है,सब सुंदर हो जाता है,जैसे माता सावित्री सिंह सवारी कर रही हो।सब प्रेममय सुहानी सी छटा लिए हो जाता है,दूर किसी मंदिर के घड़ियाल से पावनी सी महक आती है,जैसे कोई नरेश मन्दिर में दर्शन के लिए आया हो।सब प्रेममय हो जाता है,अमिट से लगता है।

प्रेम वृक्ष

प्रेम वृक्ष पर सिर्फ और सिर्फ स्नेहसुमन ही खिलते हैं।यह कोई राज नही,यथार्थ है।प्रेम का आधार कभी चारु चितवन नही, अच्छा हृदय होता है।अच्छा हृदय पूर्णिमा के इंदु की तरह आलोक का उदय करता है,लगता है जैसे प्रेम हिंडोले में मेघों से निकल कोई स्वप्नलोक से परी आयी हो,ऐसा नयनाभिराम दृश्य जोश पैदा करता है,यह अभिनव नही पुरातन सोच है।पूरब में जब आरुषि दिखती है,सब सुंदर हो जाता है,जैसे माता सावित्री सिंह सवारी कर रही हो।सब प्रेममय सुहानी सी छटा लिए हो जाता है,दूर किसी मंदिर के घड़ियाल से पावनी सी महक आती है,जैसे कोई नरेश मन्दिर में दर्शन के लिए आया हो।सब प्रेममय हो जाता है,अमिट से लगता है।

प्रेम चमन

प्रेम चमन

प्रेम चमन

आधार

आशीष

अमिट आशीष

प्रेम राज़

राज़ प्रेम का

प्रेम वृक्ष thought by snehpremchand

 प्रेम वृक्ष पर सिर्फ और सिर्फ स्नेहसुमन ही खिलते हैं।यह कोई राज नही,यथार्थ है।प्रेम का आधार कभी चारु चितवन नही, अच्छा हृदय होता है।अच्छा हृदय पूर्णिमा के इंदु की तरह आलोक का उदय करता है,लगता है जैसे प्रेम हिंडोले में मेघों से निकल कोई स्वप्नलोक से परी आयी हो,ऐसा नयनाभिराम दृश्य जोश पैदा करता है,यह अभिनव नही पुरातन सोच है।पूरब में जब आरुषि दिखती है,सब सुंदर हो जाता है,नीला अम्बर मानो अपने अंक में नीलम को समेट लेता है।जैसे माता सावित्री, सिंह सवारी कर रही हो।सब प्रेममय सुहानी सी छटा लिए हो जाता है,दूर किसी मंदिर के घड़ियाल से पावनी सी महक आती है,जैसे कोई नरेश मन्दिर में दर्शन के लिए आया हो।सब प्रेममय हो जाता है,अमिट से लगता है।

प्रकृति के जाए

कितने प्यारे हैं ये स्नेह सुमन मन के कोने कोने को जाते हैं महकाए और अधिक तो क्या कहना है जीवन सुंदर बनाते हैं ये प्रकृति के जाए।।          स्नेहप्रेमचंद