Skip to main content

Posts

Showing posts from February, 2022

Mhashivratri Special ना आदि है ना अंत जिसका(( विचार स्नेह प्रेम चंद द्वारा))

*ना आदि है ना अंत जिसका* अनंत रूप है उसका, पूरा ही ब्रह्मांड हैं शिव, और शिव हैं निराकार। जानी जिसने शिव महिमा, हो गया,भव सागर से पार।। *कोई लोक नहीं,कोई दिशा नहीं* जहां शिव प्रभाव न हो। जगत का कोई कण नहीं, *जहां भागीरथी का रिसाव ना हो* करते हैं जब *तांडव*भोले, ये वही,महाशिवरात्रि की रात है। चैतन्य जागृति की रात है। धरा गगन ठिठक गए थे, त्रिपुरारी की ऐसी बात है।। किया तांडव, आदियोगी ने ऐसा, * सागर लहरियां* भी हो गई थी खामोश। पूरी *सृष्टि* हुई नतमस्तक आगे जिसके,  लाते उत्सव,उल्लास,चेतना,विकास और जोश।। आज ही के दिन, हुआ *सागरमंथन*  पी गरल को, नीलकंठ कहलाए। धरा को बचाया विनाश से, भागीरथी को जटाओं में बहा लाए।। *जगत कल्याण* ही जिनकी, सोच और कर्म का हैं आधार। पूरा ही *ब्रह्मांड* हैं शिव, शिव आदियोगी निराकार।। पूरा अस्तित्व ही शिव का है *प्रतीकात्मक* नजर नहीं नजरिए की होती है दरकार। *जटाओं में बहती गंगा* प्रतीक है उस ज्ञान गंगा के प्रवाह की, जो एक पीढ़ी से दूज़ी में स्थानांतरित होती है, बड़ी सोच लबरेज ज्ञान से, सत्कर्मों को देती आकार।। *सिंह चर्म*निर्भयता का प्रतीक है सब निर्भय हो

शिव ही सत्य,शिव ही सुंदर

मां भारती

गिले शिकवे

केसरिया रंग से

परिचय जिंदगी का(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

   जिंदगी का अनुभूतियों से परिचय कराने वाली माँ होती है, हर क्या का जवाब माँ होती है, हर क्रियाकलाप का हिसाब माँ होती है, हर उत्सव,हर उल्लास माँ होती है, शिक्षा होती है माँ,माँ संस्कार होती है, माँ जीवन की सबसे सुंदर किताब होती है, बस हम पढ़ ही नही पाते उस किताब का हर सुन्दर हर्फ़, माँ खुदा की सर्वोत्तम कृति,माँ सच में लाजवाब होती है।।

न कोई था ना कोई है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

समय की कोख से

समय की कोख से जन्म लेती हैं घटनाएं कुछ मिलते हैं कुछ बिछड़ते है पर एक दिन अलग हो जाती हैं राहें सबका अपना अपना सफर है सब को पूरा कर के जाना है रिश्तों के ताने बाने में जो उलझा है इंसा ये सब जीवन जीने के बहाने है अपने अपने कर्तव्य जन्मभूमि पर हम को निभाने हैं मोह माया के बंधन हैं बहुत ही गहरे धीरे धीरे ये खुद से छुड़ाने हैं बिछड़ रहें हैं सब बारी बारी कुछ जाने हैं कुछ अनजाने हैं वो जो आज गये हैं हमे छोड़ कर हम बचपन से उनके दीवाने हैं मिले शांति उनकी दिवंगत आत्मा को यही श्रद्धांजलि ही हमारे तराने हैं माँ जैसी होती है मौसी है सच्चाई,नही झूठे फ़साने हैं पहले एक फिर दो फिर तीन हो गए हैं धीरे धीरे पूरे अब चार साल। जाने वाले तो चले जाते हैं अपनो के हिया में उठता है बवाल। आज दे रहे श्रधांजलि उन्हें मिले शांति उनकी दिवंगत आत्मा को मौसी थी हमारी बड़ी कमाल।। ये क्या देखते देखते ही तीन से हो गए चार साल।। समय तो चलता रहता है अपनी गति से, जिंदगी में सदा ही नहीं मिलता कोई पुरसान ए हाल।। जिंदगी चलती रहती है,किरदार बदल जाते हैं,हो बेहतर न हो मन में कोई मलाल।।

दस्तक

सफर और मंजिल

उच्चारण से आचरण तक(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

उजियारे

हौले हौले

बाबुल के आंगन की चिड़िया(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

बाबुल के आंगन की चिड़िया  एक दिन फुर्र से उड़ जाती है। कहते हैं लोग, बिटिया को पराई,  मुझे तो वह सबसे अपनी नजर आती है।। दूर जाकर भी दिल के  सदा वो रहती है पास।  इसीलिए तो कहा जाता है,  बिटिया से अधिक हो ही नहीं सकता कोई खास।।  सुनने में बेशक अच्छा लगता है बेटा हुआ है,  पर जीने में नहीं बेटी से अधिक सुखद कोई एहसास।।  जिंदगी के रवि की सुनहरी सी किरण वो,  जिंदगी की चंद्रमा की शीतल सी ज्योत्सना वो,  जिंदगी के भास्कर की मधुर सी रश्मि वो, मानो इंद्र की कोई सुंदर सी अप्सरा वो, जीवन का केंद्र बिंदु सी जिक्र और जेहन में सदा रहती है।।

अक्सर हम

हिमालय भी

बिन पाठक

प्रेम की बस बहे धारा

जड़ से ही

मांभारती

मां भारती

सैन्य शक्ति

बाबुल का आंगन

चाय प्रेम की

बिन मां के

वो भूली दास्तान

जब भी कोई अपना

सबसे ज़रूरी प्रेम

सबका मालिक एक

जब भी कभी

जब भी कहीं लिखा जाएगा संगीत का इतिहास। मुख्यपृष्ठ पर नाम होगा लता जी का, मां सरस्वती का रहा जिनके कंठ में वास।।

Poem on Mother नूर ए जिंदगी(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*नूर ए जिंदगी*कहा जाए मां को तो, कोई अतिशयोक्ति ना होगी। *रोशनी ए चिराग* कहा जाए गर मां को,तो वो सच्चे एहसासों की उम्दा अभिव्यक्ति होगी।। *अल्फाज ए किताब*कहा जाए मां को,तो भी इतना ही सही होगा, जितना बच्चे में मासूमियत का होना।। *गजल ए रूहानियत* कहा जाए गर मां को,तो वो भी सागर में नीर होने जैसा होगा।। *धड़कन ए दिल* गर कहा जाए मां कोतो ये शब्दों की नहीं, भावों की खूबसूरती होगी।। "प्रकृति की हरियाली* कहना भी मां को सही होगा। *ऊषा की लालिमा* *सावन की फुहार* *आफताब का तेज*  *इंदु की ज्योत्सना* *कायनात में चेतना* *चेतना में स्पंदन* *चित में जिजीविषा ,*नृत्य में थिरकन* *संगीत में सुर* *माटी में महक* *चिरैया में चहक* *धरा में धीरज* *गगन में ऊंचाई* *सागर में गहराई* *कंठ में आवाज* *गीत में साज* *परिंदे में उड़ान* *मानस में राघव* *गीता में शाम* *मंदिर में घंटी* *मस्जिद में अजान* * तन में श्वास* *मन में विश्वाश* *दीए में तेल* *पेड़ में छांव* *मारवाड़ में पानी* *शीत में सूरज* *पायल में घुंगरू* *सुर में ताल* *गंगन में तारे* *मेंहदी में लाली* *इंद्रधनुष में सात रंग* *आईने में प्रतिबिंब* *आग म

अक्सर

कहीं मन तो नहीं दुख गया

कोई खता

सविता

यादों के झरोखों से

सोच का विषय

आसान क्या मुश्किल क्या(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कोई क्या करता है हमारे वश में नहीं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

अधिकार या जिम्मेदारी (( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

खुद से बात करना

SUVICHAR.........Khud se bat kerna bahut zruri h Khud se mulakat kerna bahut zruri h Khud se sach bolna bahut zruri h khud ki khud se mulakat hi nhi ho pati puri zindgi yun hi chli jati h oron ko kya janeinge ham jab khud ko hi nhi jante apni kamiyon ko dur nhi kerte kutarkon ka shara lete rehte h

एक तलब सी

जिंदगी की किताब

धन्य हो जाती है लेखनी

एक ही पैमाना