Skip to main content

Posts

Showing posts with the label भले ही कांटे हों

दामन

दामन में भले ही कांटे हों, पर लबों पर सुमन सी खिली रहती थी मुस्कान कोई कैसे ऐसा कर सकता है, मेरी समझ तो आज तलक भी है अंजान