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जब धड़कन धड़कन संग बतियाती है(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

**जब धड़कन धड़कन संग  बतियाती है, फिर हर शब्दावली अर्थ हीन हो जाती है,  फिर मौन मुखर हो जाता है। ये दिल का दिल से गहरा नाता है।। नयन पढ़ लेते हैं भाषा नयनों की, लफ्जों का स्थान,  नयनों के बाद आता है।। लफ्ज़ नहीं लहजे ही  कह जाते हैं सब कुछ बहुत ही अपना, अपनों के लहजे समझ पाता है।। तूं पढ़ लेती थी  नयन और लहजों की भाषा, तेरा नाम तो इस फेरहिस्त में  बहुत ही ऊपर आता है।। लम्हा दर लम्हा बीतेगी जिंदगी, पर जिंदगी के सफर में तुझ सा मां जाई!  कोई बार बार नहीं आता है।। भाग्य नहीं ये तो सौभाग्य था हमारा  तूं बनी मां जाई हमारी, तेरा जिक्र भी जेहन में लाडो!  एक झुरझुरी सी लाता है।। जिंदगी लंबी बड़ी ना हो, जितनी भी हो, उसमे काम बड़े बड़े हों, तेरा उदाहरण यही समझाता है।। जुगनू नहीं दिनकर सी चमकी  तूं कायनात में, तेरा *औरा* जैसे सब दमकाए जाता है।। 11 स्वर और 33 व्यंजन  भी कम हैं जो बतलाएं तेरे बारे में, मेरी तो सोच की सुई जैसे  कहीं अटक सी जाती है।। *हानि धरा की लाभ गगन का* तेरे बिछोडे की मुझे तो यही बात समझ में आती है।। जब धड़कन धड़कन संग बतियाती है, फिर हर शब्दावली अर्थ हीन हो जाती है।। स्नेह प्रेम