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सिमट गई सांसों की पूंजी(( विचार स्नेह प्रेमचंद))

सिमट गई सांसों की पूंजी((श्रद्धांजलि स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*सिमट गई सांसों की पूंजी निपट गया दीए का तेल* *नहीं जग के मेले में ये संभव हो जाए जाने वालों से मेल* *पंचतत्व में मिल गई बरसों से सहेजी नश्वर काया* *जिंदगी का सफर भी क्या सफर है सब चलते हैं मगर कोई समझ न पाया* *फिर एक दिन आ जाता है बुलावा हो जाता है खत्म सांसों का खेल* *सिमट गई सांसों की पूंजी निपट गया दीए का तेल* *एक जीवन मगर अनेक किरदार* *अधिक जिम्मेदारियां थोड़े अधिकार* *पुत्र,भाई, पति,पिता,नाना,दादा बनते बनते एक दिन चलने को तैयार* *संयमित और अनुशासित सा जीवन   बिताया आपने* *हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाया आपने* *हर मोड़ पर अपना स्वाभिमान बना कर रखा आपने* *कभी गिला ना शिकवा न की कोई शिकायत आपने* *जिंदगी की हर चुनौती को हंस कर गले लगाया आपने* *जीवन साथी होने का सच्चा फर्ज निभाया आपने* *जीवन के अग्नि पथ को अपनी इच्छा शक्ति से सहज पथ बनाया आपने* **सौ बात की एक बात है बहुत कुछ सच में सिखाया है आपने**